Book Title: Padmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Author(s): Ramjit Jain
Publisher: Pragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut

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Page 425
________________ : एक विकसित समाज प्रस्तुति :- पं. शिवधरनलाल जैन, मैनपुरी मानव एक सामाजिक प्राणी है। व्यक्तियों से समष्टि प्रभावित होती है तथा समाज से व्यक्ति का सुप्त स्वरूप निखरता है। इसका श्रेष्ठ चित्र हमें जैन जगत के पद्मावती पुरवाल समाज में पल्लवित होता हुआ दृष्टिगत होता है। पुराकाल से ही यह जाति अपने विकसित क्षेत्र के निर्माण में प्रयत्नशील रही है। - पद्मावतीपुरवाल जाति के सम्पूर्ण सदस्य दिगम्बर जैन परम्परा की विश्वासी है। इस विशाल समाज का मूल निवास आगरा मंडल एवं ब्रज क्षेत्र है। यह क्षेत्र आगरा, एटा, फिरोज़ाबाद एवं मैनपुरी जिलों में विस्तार को प्राप्त है। इसके प्रमुख केन्द्र इन जिलों के अतिरिक्त टूण्डला, एत्मादपुर, शिकोहाबाद, जसराना, पाढम, अवागढ, जलेसर, फरिहा, घिरोर आदि तक फैले हुए हैं। पूर्व में इस समस्त्र क्षेत्र में गांव-गांव में पद्मावती पुरवाल जाति के लोग अपनी धार्मिक आस्थाओं को एवं आयतनों को कायम रखते हुए देव शास्त्र गुरु की अनन्य भक्ति के साथ निवास करते थे। इन ग्रामों में कोसमा, चावली, जटौआ, जारखी, नारखी, उड़ेसर, पैंडथ, फफोतू आदि विख्यात हैं। वर्तमान में अनिवार्य प्रर्वजन के फलस्वरूप ये पद्मावती पुरवाल लोग दिल्ली, इन्दौर, मुंबई, अजमेर आदि स्थानों में सम्पूर्ण देश में बस गये हैं। इस जाति में अनेकों संयमी, विद्वान, उदारमना श्रेष्ठी, सामाजिक कल्याणरत्न मनीषी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, लेखक, पत्रकार, अधिकारी पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 389

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