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मिले हुए मकान में निवास करते थे। पीली पगड़ी, झुकी हुयी कमर, लगभग 80-90 वर्ष की आयु में वरत रहे पंडित जी का तपस्वी व्यक्तित्व आज भी मेरी आंखों के सामने अत्यंत गौरवमय रूप में विद्यमान है। उपरोक्त सरस्वती पुत्रों के विषय में निम्न उक्ति सार्थक है
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'चरित्रवान मनस्वी फूलों के गुच्छे के समान है, फूल या तो देतवाओं के मस्तक पर चढ़ता है, या धूलधूसरित होने की स्थिति में खेद नहीं करता ।'
वर्तमान में समाज की उपेक्षा के कारण विद्वानों के समुदाय रूप वैभव के दर्शन अब नहीं हैं। इस जाति में अब उंगलियों पर गिनने लायक ही विद्वानों का सद्भाव है। अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन शास्त्री परिषद् के यशस्वी अध्यक्ष, जैन गजट के प्रधान संपादक, पी. डी. जैन कालेज, फिरोजाबाद के पूर्व आचार्य श्री नरेन्द्र प्रकाश जी इस समाज के विद्वत् वर्ग का नेतृत्व कर रहे हैं। वे कुशल पत्रकार, सुलझे हुए धार्मिक एवं सामाजिक कार्यकर्ता, लेखनी के धनी, कुरीतियों एवं आगम विरोधी प्रवृत्तियों के विरुद्ध जुझारू, मनीषी, लोकमान्य नता, उत्कृष्ट शिक्षक, प्रशिक्षक, एकान्त निश्चयाभाषी के सफल निरसक और सबके प्रिय वाणी के जादूगर के रूप में विख्यात हैं । भारतवर्षीय दि. जैन महासभा के सचेतक इन सादे व्यक्तित्व के धनी महानुभाव के सम्मान हेतु महासभा के द्वारा अभिनन्द ग्रन्थ प्रकाशित करने की योजना साकार रूप लेने जा रही हैं उनके विषय में निम्न पंक्तियां उनके मनीषी एवं हितैषी स्वरूप के विषय में सार्थक हैं
'मनीषिणः सन्ति न ते हितैषिणः, हितैषिणः सन्ति न ते मनीषिणः । सुहृच्च विद्वानपि दुर्लभो नृणां यथौषधं स्वादु हितं च दुर्लभं ॥' (भर्तहरि )
- जो मनीषी हैं वे हितैषी नहीं हैं, जो हितैषी हैं वे मनीषी नहीं हैं। हितैषी मित्र जो हो और विद्वान भी हो, मनुष्यों में यह उसी प्रकार दुर्लभ है, जैसे औषधि स्वादिष्ट भी और हितकारी भी हो ।
पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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