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आफ जैन आइक्नोग्राफी, सं. पु. प. अं. 9 पृष्ठ 2 ) । इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि मणिभद्र प्रतिमा जो पद्मावती से प्राप्त हुई है, कहीं महावीर इन्हीं यक्ष चैत्यों में विश्राम न किए हों। यह खोज का विषय है । मणिभद्र यक्ष की चरण चौकी में कुल छः पंक्तियों में लेख है । यह लेख प्रथम शती ईस्वी का है। प्रतिमा की स्थापना दानदाताओं द्वारा की गई है।
एक जन-समुदाय के द्वारा यक्ष की प्रतिमा के स्थापना से सिद्ध होता है कि तत्कालीन जैन समाज में जन सहयोग की भावना सुदृढ़ थी । हो सकता है पद्मावती पुरवाल समाज के कुछ लोग इस प्रतिमा को धन-धान्य देवता के रूप में पूजा करते थे । मणिभद्र यक्ष की मूर्ति और मथुरा की कुबेर यक्ष की मूर्तियों में अद्भुत समानता है । उस काल में कुबेर की उपासना तो इतनी लोकप्रिय हो चुकी थी कि हिन्दुओं के अतिरिक्त जैन और बौद्ध धर्मवाबलम्बी भी पूजने लगे थे। मणिभद्र के हाथ कुबेर जैसी थैली है।
पवाया में प्राप्त स्त्रियों और पुरुषों के केशों को संवारने की विधि affes घुंघराले बाल जैसे ही जिस प्रकार तीर्थकरों के बाल होते हैं, इस कलात्मक केश को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि यह उसी धर्म-जाति के लोग हैं जो इससे परिचित होंगे। कहीं पुरवाल जाति तो इस प्रकार के केश बनाने वाले तो नहीं थे। यह एक नई तथ्यात्मक टिप्पणी है, जिसे खोजना आवश्यक है ।
पद्मावती से प्राप्त मणिभद्र यक्ष प्रतिमा सार्थवाहों के आराध्य यक्ष थे पद्मावती से प्राप्त मणिभद्र यक्ष की चरण चौकी पर अंकित लेख में इस बात का उल्लेख किया गया है कि शिवनंदी के समय में नगर के जैन समुदाय ने मिलकर इस यक्ष की स्थापना की थी। पद्मावती अन्तर्राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित थी । सार्थवाह को कहीं-कहीं जैन समुदाय के अन्तर्गत पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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