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विष्णु पुराण में जिन तीन नामों का उल्लेख किया गया है यथा- पद्मावती, कान्तिपुरी और मथुरा, उनके विषय में श्री कानिंघम द्वारा किया गया संकेत विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उन्होंने पद्मावती को वर्तमान नरवर के रूप में पहचाना जो कि मथुरा से 150 मील की दूरी पर स्थित है। (देखें कनिंघम की सर्वेक्षण रिपोर्ट खंड-2 पृष्ठ 303 ) । पद्मावती पर परमार वंश के राजाओं का राज्य रहा था । धुन्दपाल उस वंश का एक शक्तिशाली राजा था, जिसने किले का निर्माण कराया था । पद्मावती दो नदियों से आवेष्ठित थी - एक सिन्धु और दूसरी पारा ।
पद्मावती गुप्तकाल से पूर्व एक समृद्धिशाली नगर था। वैसी तो पद्मावती के खण्डहरों में उस नागवंशीय राजधानी के ध्वंसावशेषों को पहचाना जा सकता है और इस बात का परिचय भी मिल ही जाएगा कि ये अवशेष आगे चलकर गुप्तों से भी प्रभावित हुए ।
पद्मावती का तत्कालीन समाज कला-प्रिय रहा होगा, इसमें कोई संदेह नहीं । किन्तु इसके साथ-साथ पद्मावती एक वैभवशाली और धन-धान्य सम्पन्न नगर था, इस बात को सिद्ध करने के लिए भी पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं। इसके साथ ही देशी और विदेशी व्यापार के प्रमुख मार्ग पर स्थित होने के कारण यह नगर संस्कृति का एक केन्द्र बन गया था। इसी सांस्कृतिक वैभवशाली नगरी से जैन जाति की श्रेणी में पद्मावती पुरवाल जाति का उद्भव हुआ है, ऐसी मेरी मान्यता है। कुषाण शासन काल में हमें अधिकांशतः बौद्ध और जैन धर्मों के स्मृति चिह्न मिलते हैं। पवाया से प्राप्त मणिभद्र यक्ष की प्रतिमा इस बात का प्रमाण है कि यहां जैन धर्म के अनुरागी सार्थवाह विशेष उत्सव पर मूर्ति के आस-पास नृत्य-संगीत से मनोरंजन किया करते थे । जैन ग्रन्थों में महावीर की यात्रा के संदर्भ में उनके किसी जैन मंदिर में जाने या जिन मूर्ति के पूजन करने का अनुल्लेख है। इसके विपरीत यक्ष- आयतनों एवं यक्ष-चैत्यों (पूर्णभद्र और मणिभ्रद ) में उनके विश्राम करने के उल्लेख प्राप्त होते हैं, (शाह यू.पी. 'बिगनिंग्स
पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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