Book Title: Padmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Author(s): Ramjit Jain
Publisher: Pragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut

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Page 430
________________ पद्मावतीपुरवाल जाति का इतिहास प्रस्तुति :-लाल बहादुरसिंह, संग्रहाध्यक्ष, पुरातत्व संग्रहालय, गूजरी महल, ग्वालियर पुरातत्व-शास्त्रियों के अथक और सतर्क प्रयास से कण-कण एकत्रित की हुई सामग्री पर इतिहास के भवन की भित्तियों का निर्माण होता है। किसी भी जाति के इतिहास को जानने के लिए स्थान विशेष का अधिक महत्व होता है। हमारी सभ्यता-संस्कृति नदियों के किनारे ही बसी, पनपी और विकसित हुई। प्राचीन मुद्राएं, अभिलेख, स्थापत्य' आदि के भग्नावशेष वे सामग्रियां हैं जिनके सहारे इतिहास का वह ढांचा तैयार होता है, जिसको दृढ़ आधार मान एवं पुराण, काल, अनुश्रुति आदि का सहारा लेकर इतिहासकार अत्यन्त धुंधले अतीत के भी सजीव एवं विश्वसनीय चित्र प्रस्तुत करता है। ऐसे ही धुंधले अतीत पद्मावती पुरवाल जाति के बारे में है। ये जैन जाति का नया उद्गम स्थल पद्मावती से है जिनके इतिहास का पन्ना पलटना आवश्यक है। पवाया, जिसे पद्म-पवाया अथवा 'पदम-पवा' कहा जाता है, मध्य रेलवे के डबरा स्टेशन से साढ़े तेरह मील दूर स्थित है। डबरा ग्वालियर से 45 कि.मी. की दूरी पर है। डबरा से एक सडक भितरवार के लिए जाती है। उसी सांखनी ग्राम से होती हुई धूमेश्वर मंदिर के पास ही पद्मावती नगरी बसी थी। पद्मावती के संबंध में प्राचीनतम उल्लेख 'विष्णुपुराण' में मिलता है, यथा 'नवनागास्तु भोक्ष्यंति पुरी पद्मावती नृपाः मथुरांच पुरी रम्यां नागा भोक्ष्यति सप्तवै।' पद्यावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 394

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