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स्थापना की। ये वंश क्षत्रिए जाति के कहलाए। संहनन (शारीरिक गठन एवं क्षमता) गुण कर्म के आधार पर वैश्य तथा प्रजावर्ग जातियों का निर्माण हुआ । इस प्रकार क्षत्रिय जाति संसार की आध जाति ठहरती है।
ऋषभ के दो पुत्र भरत और बाहुबली के द्वारा इक्ष्वाकु के दो वंश कालान्तर में और किए गए ( बनाए गए जिन्हें क्रमशः सूर्य और चन्द्र वंश के नाम से पुकारा जाता है। उपरोक्त सोमवंश में सोम-श्रेयांस बन्धु बड़े प्रतापी राजा हुए। इन्हीं के पुत्र जयकुमार भारत की सेना के सेनापति और ऋषभदेव के 72वें गणधर हुए। सेनापति जयकुमार ने ही 'स्वयंवर' की प्रथा चलाई, जो मध्ययुग तक क्षत्रियों में बहु प्रशंसित प्रथा रही। इसी स्वयंवर प्रथा के अनुसार जय कुमार ने सुलोचना से विवाह किया। कहा जाता है कि पद्मावती पुरवाल इन्हीं जयकुमार के वंशज हैं, जिनका मूल निवास हस्तिनापुर था।
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इस अध्ययन के आधार पर इस तथ्यपर निष्कर्ष रूप में विचार बन सकता है, कि आज की पद्मावती पुरवाल जाति मूलतः क्षत्रिय सोमवंशीय जाति ही है और ऋषभकाल से ही जैनधर्मावलम्बी है । क्षत्रिय होने के प्रमाण के लिए हमें दोनों जातियों की प्रचलित प्रथाओं का अध्ययन करना पड़ेगा। इन प्रथाओं का आश्रय लेना इसलिए आवश्यक हो जाता है, कि निर्धारित नियम आज मात्र सिद्धान्त ही रह गए हैं; शिथिलाचार ने उन सिद्धान्तों के खण्डहरों पर कुठारघात करना कभी किसी काल में कम नहीं किया। वर्तमान काल में हम क्षत्रियों और पद्मावती पुरवाल जैन जाति में समाज प्रथाओं की ओर संकेत करना चाहेंगे, ताकि यह अनुमान लगाना है कि पद्मावती पुरवाल मूलतः क्षत्रिय हैं, कोरी कल्पना न रह जाये।
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'जुहरु' शब्द दोनों जातियों में सम्मान सूचक है। बड़ों के लिए आज तक दोनों जातियों में यह शब्द प्रयुक्त होता है। पंडितों और जैनियों में पांडों (जो पंडितों का पर्याय है) का
पचायतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास