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बीसा। दो दशक पहले तक धार्मिक मंच पर दोनों एक थे, किन्तु सामाजिक मंच पर अलग-अलग थे। रोटी बेटी के सम्बन्ध प्रायः नहीं थे। आज इस बन्धन में कुछ शिथिलता आ गयी है। 'धर्म-सम्पूर्ण जाति अविच्छिन्न रूप से शुद्ध दिगम्बर जैन आम्नाय को मानती है। एक भी सदस्य दूसरे धर्म को मानने वाला नहीं है।
सामाजिक स्थिति-सदस्यता का आधार जन्म होता है। पितृ प्रधान परिवार पाए जाते हैं। संयुक्त परिवार में अधिक विश्वास होता है। दयाभाग में पुत्री को सम्मिलित नहीं करते। स्त्रियों की दशा सामान्य है तथा स्त्रियां स्वयं को पराश्रित समझती हैं। दैनिक पूजा पाठ, चौके की शुद्धता एवं खानपान की त्याग में भावना विशेष रहती है। लोग अधिकांश में देव दर्शन के बाद ही दिन में खाने का कार्य सम्पन्न करते हैं। यह जाति पूर्णतः शाकाहारी है।
विवाह-इस जाति के लोग अन्तः समूह विवाह पद्धति में विश्वास करते हैं। एक बार किए हुए अंतर्जातीय विवाह से उत्पन्न सन्तान पुनः पद्मावती पुरवाल जाति में सम्मिलित नहीं हो सकती। जाति मां से चलती
विवाह निम्नलिखित सोपानों में सम्पन्न होता है
वर की खोज-यह विवाह की प्रस्तुति है। वर कन्या से 4 वर्ष बड़ा होना अच्छा समझा जाता है। कन्या और वर में बारह वर्ष से अधिक अन्त निम्न स्तर का माना जाता है।
वाग्दान-वर के पिता के द्वारा दिया गया शादी का वचन वाग्दान कहा जाता हैं वंश, गोत्र, परिवार में पाया जानेवाला दोष अथवा वर का कोढ़ी, पागल, अपराधी अथवा कन्या के दुराचारिणी पाए जाने पर यह वचन भंग किया जा सकता है।
गोद भेरना-गोद एक स्नेह युक्त आत्मीयता प्रकट करने की रस्म थी 407
पावतीपुरवात दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास