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यथा शक्ति विवाह के स्तर को देखकर दान की घोषणा करता है। पहले बिना देवदर्शन किए कन्या पक्ष का समस्त खान-पान धर्जित था।
सज्जन मिलाप-दुपहर को दोनों पक्ष आपस में बड़े स्नेह और आदर के साथ एक दूसरे का परिचय देते हुए गले मिलते हैं। इसे समय शुभ लग्न में विवाह होने की लग्न छांटी जाती है।
विवाह-शुभ लग्न में पाण्डे महोदय के द्वारा पूजन के बाद सप्तपदी का कार्य होता है। इसी समय वर और कन्या दोनों को सात-सात बचन दिलाए जाते हैं। जिन्हें सवीकार कर लेने के बाद ही कन्या 'बांए' अङ्ग आती है। .
इस प्रकार सम्पूर्ण विवाह हो होने वाले कार्यक्रमों के संकेतों से पूर्ण होता है।
पद्मावतीपुरवाल जैन जाति की वर्तमान स्थिति यों तो देश काल के द्वारा आए परिवर्तनों का प्रभाव प्रत्येक जाति पर पड़ा है। फिर भी पद्मावती पुरवाल अपनी मूल बातों को अभी तक नहीं भुला पाए हैं। दक्षिण भारत, उत्तरी भारत से कई बातों में भिन्न है। यह भिन्नता दक्षिण के नागपुर भाग में बसे हुए लगभग सात सौ पद्मावती पुरवाल परिवारों पर भी लागू है। चौके की मर्यादा प्रायः टूट चुकी है। भक्ष्य पदार्थों की भी उतनी मर्यादा अब नहीं रही। विवाहादि कार्य 8 घण्टों में ही होते थे, वे भी अब समापत होने लगे हैं। धीरे-धीरे रात्रि भोजन की भी प्रथा चालू होती जा रही है। व्यावसाय में भी यह जाति अन्य लोगों के साथ चल रही है। यह सब शिथिलता और टूटते सांस्कृतिक किनारों के चिह्न हैं। उत्तरी भारत में भी यह सभी बातें धीरे-धीरे घुस रही हैं। जहां दक्षिण भारत के पद्मावती पुरवाल वैवाहिक कार्यों, खान-पान एवं क्रियाकाण्डों में शिथिल हैं। ..
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पचायतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास