Book Title: Padmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Author(s): Ramjit Jain
Publisher: Pragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut

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Page 440
________________ प्रकाश 'ब्रह्ममुलालचरित्र' (17वीं शताब्दी) में मिलता है। उसके अनुसार इस जाति का वंश सोमवंश और सिंह तथा धार ये दो गोत्र थे। इन्होंने क्षत्रिय वृत्ति का परित्यागकर वणिक्वृत्ति अपनाई और धनधान्य से पूर्ण हो गए। पद्मावती पुरवाल बन्धु धार्मिक भावनाओं में श्रेष्ठ आचरण वाले थे। हम देखते हैं कि तीन सौ वर्ष पहले कही हुई बात आज भी सही चरितार्थ हो रही है। अब हम उन किंवदन्तियों को लेते है जो इस जाति की उत्पत्ति का दावा करती है। पहली-पद्मावती नगर जो अपने ऐश्वर्य और धनधान्य के कारण बहु प्रशंसित थी, एक तपस्वी के कोप का शिकार बनी । तपस्वी ने अपनी विद्या तथा प्रभाव से नगरवासियों को नाना प्रकार से सताना आरम्भ किया। अन्त में तंग होकर उस नगर के 1400 परिवार निकलकर अन्यत्र चले गये। वे तीन शाखाओं में बंटे-एक शाखा दक्षिण को, दूसरी मध्य भारत को और तीसरी उत्तरी भारत में आकर बस गई। ये लोग चूंकि 'पद्मनगरी' के थे, इस कारण 'पद्मावती पुरवाल' कहलाए। दूसरी किंवदन्ती इस प्रकार है-'पद्मावती नगर' के राज्य मन्त्री के एक सुन्दर कन्या का जन्म हुआ। वह कन्या इतनी अधिक सुन्दर थी, कि राजा उस पर मोहित हो गया। उसने उस कन्या से विवाह करना चाहा, किन्तु आयु, जाति एवं धार्मिक अन्तर के कारण मन्त्री कन्या को नहीं देना चाहता था। मध्ययुगीन शासक की आसक्ति कन्या पर दिनों-दिन बढ़ती गई। अन्त में मंत्री के समक्ष राजा का प्रस्ताव आया। उन दिनों पद्मावती पुरवाल समाज में जातिय पंचायत का प्रचलन था। (आधुनिक काल के समान)। मंत्री ने वह प्रस्ताव पंचायत के समक्ष रक्खा । पंचायत ने प्रस्ताव का विरोध किया। फलतः शासक से मंत्री ने कन्या न देने के निर्णय-की बात कही। राजा यह सुनकर बल प्रयोग पर उतारू हो गया। उसने युद्ध अथवा विवाह या राज्य से चले जाने की घोषणा की। जातीय पंचायत ने राज्य त्याग कर चला जाना ही उचित समझ, किन्तु उन्मादी शासक ने पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 404

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