Book Title: Padmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Author(s): Ramjit Jain
Publisher: Pragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut

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Page 433
________________ माना है। यह एक विशाल तीर्थ स्थान रहा होगा, जो सार्थवाह उत्तर भारत से दक्षिण भारत में यात्रा करते थे तथा जो दक्षिण से उत्तर में जाया करते थे वे मणिभद्र यक्ष की मान्यता में विश्वास करके इसको पूजते होंगे। __ पद्मावती में एक प्रतिमा के ऊपर पांच सर्पफन से आच्छादित मृण्मयी मूर्ति भी प्राप्त हुई है जिसे कुछ विद्वान नाग देवता कहते हैं और जैन धर्म के पार्श्वनाथ से भी जोड़ते हैं। यह एक खोज का विषय है। पद्मावती पुरवाल जाति का इतिहास पद्मावती स्थान से जुड़ा हुआ है तथा मणिभद्र यक्ष एवं जैन मूर्ति मिलना तथा सार्थवाह का धन धान्य में विश्वास रखना तथा जो दानदाताओं की श्रेणी में सबसे आगे भी थे इसके अतिरिक्त यहां की मृण्यमयी प्रतिमाओं के धुंघराले केश विन्यास, यह सब एक जाति विशेष की कला की सोची समझी इतिहास की कड़ी है। इससे हम कह सकते हैं कि पद्मावती पुरवाल जैन जाति का उद्भव पद्मावती से हुआ होगा। सच्ची विनय सामान्यतया महापुरुषों के सामने झुकने को विनय माना जाता है किन्तु सच्ची विनय तो महापुरुषों की आज्ञा का पालन करना है। कोई बेटा अपने पिता के चरण-युगल तो रोज दाबे, उनका यथोचित सत्कार भी करे, किन्तु उन्हें वक्त पर न तो भोजन दे और न ही उनकी सीख ही माने तो उसे सपूत नहीं कहा जा सकता। तीर्थंकरों द्वारा निर्दिष्ट मार्ग पर चलना ही सच्ची विनय है। -आधुनिक राजस्थान, अजमेर : 26-8-90 397 पद्यावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास

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