Book Title: Padmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Author(s): Ramjit Jain
Publisher: Pragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut

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Page 428
________________ पद्मावती पुरवाल समाज मेरे अनुमान के अनुसार एक बहुसंख्यक समाजों में अपना स्थान रखती है। इसके नामकरण के विषय में पद्मावती देवी अथवा पद्मावतीपुर नाम के स्थान से बिठाना कठिन ही प्रतीत होता है। विदित ही है कि यह समाज अपने धार्मिक संस्कारों, पूर्व परम्परा के सादा जीवन उच्च विचार एवं लोक में मिलजुल कर रहने की प्रवृत्ति को यथावत कायम रखने का भगीरथ प्रयत्न करता रहा है। आम जैनेतर जनता की लौकिक एवं सामाजिक, धार्मिक मान्यताओं के प्रति सहिष्णुता का परिचय अपनी श्रद्धा और जैन धर्म की आचार संहिता को अक्षुण्ण बनाये रखते हुए देती रही है, और यह पद्धति पूर्वाचार्यों के निम्न संदेश की संवाहक ही है 'सर्व एव हि जैनानां प्रमाणं लौकिको विधिः । यत्र सम्यक्त्व हानिर्न यत्र न व्रतदूषणं ॥' ( यशस्तिलकचम्पू, आ. सोमदेव) - जैनियों को सभी लोक समुदाय (जैनेतर भी) की वह विधि, रीतिरिवाज, रहन सहन स्वीकार करने योग्य है, जिससे सम्यक्त्व की हानि न हो और व्रत चारित्र में दूषण न लगे । वर्तमान में भी राष्ट्रीय, सामाजिक एवं धार्मिक आचार्यों की सभी विधाओं में अपनी ईमानदारी, धर्मभीरुता, कुशलता आदि गुणों के साथ यह जाति समादर की दृष्टि से स्वीकार की जाती है । इस समाज के केन्द्र फिरोजाबाद क्षेत्र का एक प्राचीन गौरवशाली इतिहास है । फिरोजाबाद के अस्तित्व से पूर्व लगभग 700-800 वर्ष पहल निकटवर्ती चन्दवार (चन्द्रवाट ) नाम का विशाल राज्य था । इस राज्य को यमुना नदी अपने सुरम्य, शीतल वातावरण से समृद्ध करती रही हैं वहां के राजा जैन धर्म की प्रति श्रद्धालु थे । वैभवयुक्त विशाल राजधानी में विशाल जैन मन्दिर धर्म प्रभावना के केन्द्र थे । उसी नगर से मुनि पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 392

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