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निर्धारित किया है
प्रथम पंक्ति - (रा) ज्ञा: श्वा (मि) शिव (न) न्दिस्म संव (त्स) रे चतु (') ग्र (1) षम पक्ष ( ) द्विवतीयेर (f) दबस ( )
द्वितीय पंक्ति-द्व (1) द (शे) 102 यतस्य पूर्वाय ( ) गोष्ठ्या मणिभद्र भक्ता गर्भसुरिवता अर्हता भगवतो ।
तृतीय पंक्ति-माण (f) भद्रस्य प्रतिमा प्रतिष्ठाययति गोष्ठ्याम भगवा आयु वालम वायम कल्प (1) शाम्यु
मथुरा के ग्राम परखम में यक्ष की विशालकाय मूर्ति मिली है। उसकी तुलना पवाया के मणिभद्र यक्ष की मूर्ति से की जा सकती है। धन का भण्डारी कुबेर यदि मथुरा में धन वैभव की वृद्धि कर रहा था तो उसका . सहोदर माणिभद्र यक्ष पद्मावती में सुख समृद्धि बढ़ा रहा था। उस काल मे जैन धर्मानुयायी भी कुबेर और मणिभद्र यक्ष को 'क्षेत्रपाल' की तरह रखने लगे थे । (देखिए 'मथुरा' डॉ. के. डी. वाजपेई पेज 35 )
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पद्मावती की स्थिति के विषय में इतिहासकारों का अनेक वर्षों तक विवाद बना रहा। कोई विद्वान उज्जैन के पास जैसा कि कोषकार ने पद्मावती के अर्थो में उज्जयिनी का प्राचीन नाम दिया है। एकमत नरवर की वर्तमान स्थिति को मानता रहा। राजस्थान में भी पद्मावती सिद्ध की जाती रही। लंबे विवाद के बाद यह निश्चित हुआ कि पद्मावती वर्तमान पवाया ही है । उत्खनन रिपोर्टों से इसे सिद्ध कर दिया। पद्मावती पुरवाल जाति का उद्गम स्थल यही स्थान है। इसकी पुष्टि डॉ. यशवंत मलैय्या, डा. कासलीवाल, डॉ. एस. एम. गर्दे की रिपोर्ट करती हैं।
विष्णु पुराण का यह श्लोक यहां समीचीन है
"नवनागाः पद्मावत्यां कांतिपुरिर्या मथुरायामनुगंगा प्रयागं मागधा गुप्ताश्म मौक्ष्यंति"
नागजाति का विस्तार इस श्लोक़ से पर्याप्त मिल जाता है।
पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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