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का एहसास कराती है। मंदिर के मेट ठोस पीतल के बने हुए हैं। उम्मरगढ़ के प्रमुख जैन घरानों में महामहा पितामह सर्वश्री दिलसुखरामजी, तोतारामजी, अजुध्या प्रसाद जी, आलम चन्द्र जी, मुन्नी लाल जी, प्यारेलाल जी, बाबू लाल जी, बनारसीदास जी, हुण्डीलाल जी, मुंशीलालजी, बौहरेलालनी, साहूलाल जी, लक्ष्मण प्रसाद जी आदि थे। लगभग 7-8 दशक पूर्व से पूर्वज इसौली (एटा) में बस गए। उम्मरगढ़ के जैन बंधु यहां गांधीनगर, मुहल्ला दुली, मुहल्ला गंज, नई बस्ती, जैन कटरा में व्यावसायिक एवं शैक्षिक दृष्टिकोण से आकर बस गए। सन् 1955 में उम्मरगढ़ जैन पंचायत में जैन मंदिर हेतु जमीन खरीदकर निर्माण प्रारंभ किया गया तथा 1960 में मंदिर पूर्ण बनकर तैयार होने पर उम्मरगढ़ से प्रतिमाजी लाकर प्रतिष्ठा व शुद्धि करके वेदियों में स्थापित की। धीरे-धीरे मंदिर जी का विकास कार्य जारी रहा। दो मंजिला मंदिर जी में 3 वेदी तथा वेदियों के चारों ओर नक्काशी एवं कांच का अनूठा कार्य किया गया है। बीच की वेद में मूलनायक प्रतिमा श्वेत पाषाढ भगवान पार्श्वनाथ जी की है जो पदमासन अवस्था में है। अष्ट धातु की भगवान वासपूज्य जी की प्रतिमा भी स्थापित है । अन्य मंदिरजी में 31 प्रतिमाएं प्राचीन एवं वर्तमान में प्रतिष्ठित की गई मूर्तियां हैं। ये मूर्तियां तीनों वेदी पर स्थापित हैं।
मंदिरजी में उम्मरगढ़ के अलावा दौही, पचवान, कुरगमां, इसौली ग्राम के मंदिरों की मूर्तियां भी स्थापित हैं। इन ग्रामों के मूल निवासी एवं वर्तमान के गांधी नगर निवासी इसी मंदिर में अभिषेक, पूजन पाठ को निशदिन आते हैं। मंदिर जी प्रबंधन हेतु एक पंजीकृत ट्रस्ट भी हैं। जिसमें 5, ट्रस्टी उम्मरगढ़ इसौली परिवार से तथा 5 ट्रस्टी स्थानीय मुहल्ला से एवं एक संयोजक हैं। ट्रस्ट के अंतर्गत अन्य संस्थाएं भी हैं। 1. श्री दिगम्बर जैन मंदिर उम्मरगढ़, गांधी नगर: 2. पूजन विधि; 3. श्री पार्श्वनाथ बर्तन भण्डार; 4. जैन धर्मशाला आदि। जैन धर्मशाला मंदिर जी के ठीक सामने हैं तथा दो मंजिली बनकर तैयार है। गांधीनगर के लिए
पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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