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'पद्मावती' और पद्मावतीपुरवाल
-डा. अभयप्रकाश जैन, ग्वालियर “पद्मावती' ग्वालियर के दक्षिण पश्चिम दिशा में 42 कि.मी. की दूरी पर डबरा-करियावटी मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है। यह स्थान सिंघ-पार्वती नोन नदियों के संगम पर स्थित है। आज कल इस ग्राम को पवाया कहते हैं। इसका प्राचीन नाम पद्मावती खजुराहो शिलालेख 1001 शती ई. तथा वि.सं. 1058 में प्राप्त होता है। विष्णु पुराण में उल्लेख है श्रमण धर्म को मानने वाले नागवंश की राजधानी पद्मावती थी। डॉ. यशवंत मलैय्या कोलेरेडो वि.वि. अमेरिका के मत से पद्मावती पुरवाल जाति का उद्गम इसी स्थान से माना जाना चाहिए। उन्होंने जैन जातियों के इतिहास पर मौलिक शोध किया है। महाकवि भूवभूति (कालिदास के समकालीन) की जन्म स्थली भी पवाया थी जहां उन्होंने मालती माधव तथा उत्तर रामायण नाट्यों का प्रणयन किया, जिनमें पद्मावती का चित्रण किया गया है। नाग और ग्राह्य जातियां श्रमणधर्म मानने वाली जातियां थीं, ऐसा वेदों में उल्लेख है। नागों के राजवंश को हम तीन भागों में बांट सकते हैं
श्रृंगों के सकालीन-श्रृंगों से कनिष्क तक और कुषाणों के पश्चात् वाकाटकों तक पहली शाखा विदिशा में सीमित थी। उनके विषय में विस्तृत शोध जरूरी है। शुंगों के पश्चात् नागों ने अपना राज्य विदिशा से पत्रावती तक फैला लिया था। इसके बाद गुप्त राजवंश के भी अवशेष यहां प्राप्त हुए हैं, जिसमें तीसरी-चौथी शताब्दी की मणिभद्र यक्ष पाषाण पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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