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' ' जातीय गौरव-रक्षा और संगठन : कुछ सुझाव
प्रस्तुति-प्रताप जैन जैन जातियों के इतिहास के अनुसार वर्तमान सामाजिक वर्ण व्यवस्था भगवान आदिनाथ के समय से ही चली आ रही है। इतिहास में जैन धर्मावलम्बियों की जिन प्रमुख 84 जातियों और 153 उप-जातियों का उल्लेख मिलता है, उनमें पद्मावती पुरवाल जाति का नाम प्रमुखता से लिया गया है। प्रारम्भ से ही इस जाति में उच्च कोटि का पांडित्य रहा है। आज भी अनेक परम तपस्वी और ज्ञानी साधु हैं। अच्छे कलाकार, वक्ता और प्रवक्ता भी इस जाति में हैं। वैसे इस जाति में गौत्र व्यवस्था भी थी, पर अब व्यापक संदर्भ में सम्पूर्ण पद्मावती पुरवाल जाति दिगम्बर जैनों
का एक गोत्र (घटक) के रूप में सिमट कर रह गई है। ___ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र आदि के कुछ जिलों और उनके ग्रामीण आंचलों में रहने वाली पद्मावती पुरवाल जाति के लोगों की दृढ़ धार्मिक आस्था, सामाजिक समर्पण एवं चारित्रिक प्रमुखता के कारण इस जाति का अतीत अत्यन्त गौरवमयी रहा है। यह जाति सदैव से अविच्छिन्न शुद्ध दिगम्बर जैन आम्नाय की उपासक और पौषक रही है। सज्जातित्व की रक्षा के लिए यह जाति अपने बच्चों की शादी विवाह अपने जाति के परिवारों एवं अपने जाति के ग्रहस्थाचार्यों (पांडे) के माध्यम से कराती रही है। इस जाति की एक बहुत बड़ी विशेषता यह भी है कि दिगम्बर जैन पावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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