Book Title: Padmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Author(s): Ramjit Jain
Publisher: Pragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut

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Page 406
________________ महात्मा भगवानदीन, श्री जैनेन्द्रकुमार जैन, साहू श्रेषांसप्रसाद जैन, श्री अक्षयकुमार जैन आदि से। उनकी प्रेरणा से वे समाज की सबसे पुरानी क्रांतिकारी सुधारवादी संस्था दिगम्बर जैन परिषद् से जुड़े तथा उसकी देशव्यापी मतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेने लगे। यह वह समय था, जब परिषद समाज में वर्ग भेद के खिलाफ आवाज उठाकर उन सभी बन्धुओं को सामाजिक संगठन में लाने के प्रयास में जुटी थी, जो समय के प्रभाव वै परिस्थितिवश समाज की मुख्यधारा से कट गये थे। किन्तु आचार-विचार से जैन-संस्कृति का पालन करते थे और देव, शास्त्र तथा गुरु में जिनकी आस्था थी साहू शांतिप्रसाद जैन के नेतृत्व में तब श्री बाबूलाल जैन जमादार आदि ने ऐसे क्षेत्रों का व्यापक भ्रमण किया। सराक, कलार आदि के नाम से जाने वाले ऐसे चार लाख से अधिक व्यक्ति थे, जो समाज की मुख्यधारा से कट गये थे। और बिहार, बंगाल, उड़ीसा व मध्यप्रदेश में रहते थे। इन्हें समाज में वापस लाने के प्रयासों में श्री पारसदास जैन ने सहयोग दिया। भगवान महावीर के 2500वें निर्वाण-महोत्सव के बाद सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज को एकसूत्र में संगठित करने के उद्देश्य से साहू शांतिप्रसाद जैन न जब दिगम्बर जैन महासमिति की स्थापना की, तो श्री पारसदास जैन उसके संस्थापक सदस्यों में थे। साहू शांतिप्रसाद जैन के सहयोगी के रूप में वे भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी की गतिविधियों से भी जुड़े थे। साहू शांतिप्रसाद जी के बाद जब यह दायित्व साहू श्रेयांस प्रसाद जी ने संभाला, तो उसी कर्मठता से उन्हें भी अपना सहयोग प्रदान किया। आप भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी के सम्माननीय सदस्य हैं। साहू अशोक कुमार जैन ने जब सक्रिय रूप से समाज का नेतृत्व संभाला तो एक विश्वस्त एवं कर्मठ सहयोगी के रूप में श्री पारस दास जैन ने उनका साथ दिया। अपने पिताश्री साहू शातिप्रसाद जैन की भावना को साकार करने की दृष्टि से अशोक ने दिगम्बर जैन महासमिति की पथावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 370

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