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३. जाने पर उन सबसे स्थानीय और केन्द्रीय स्तर पर सम्पर्क करना
चाहिए। उनकी नियमित बैठकें और चुनाव नियत समय पर होने चाहिए ताकि पंचायत / समाज की गरिमा बनी रह सके। इस प्रकार पुरानी पीढ़ी के साथ-साथ नई प्रतिभाएं भी उभरेंगी और वही हमारा भविष्य होगा।
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2. जिस शहर में 20-25 या इससे अधिक पद्मावती पुरवाल जाति के परिवार रहते हैं, वहां बिना किसी भेदभाव के उनका एक स्थानीय संगठन होना चाहिए।
3. मेघावी छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्ति एवं प्रोत्साहन पुरस्कार देने चाहिए।
4. विधवाओं, परित्यक्त महिलाओं, पिछड़े एवं पीड़ित वृद्धों और उन पर आश्रितों के पालन पोषण में गोपनीय आधार पर आर्थिक सहायता एवं अन्य माध्यमों से स्वावलम्बी बनाने का प्रयास करना चाहिए।
5. व्यक्तिगत अथवा पारिवारिक विवादों के साथ-साथ सामाजिक मतभेदों को भी गोपनीय आधार पर जाति के वरिष्ठतम एवं अनुभवी बन्धुओं के माध्यमों से निबटाने का प्रयास करना चाहिए।
6. पद्मावतीपुरवाल जाति द्वारा निर्मित/ स्थापित मंदिरों, धर्मशालाओं एवं अन्य संस्थाओं के भवनों पर 'पद्मावतीपुरवाल' शब्द होना चाहिए। चाहे वह भले ही किसी निजी ट्रस्ट द्वारा संचालित हो । 7. जातीय गौरव को आगे बढ़ाने के लिये स्थायी महत्व के कुछ रचनात्मक कार्य होने चाहिए।
8. स्थानीय स्तर पर अन्य साधर्मी बन्धुओं के संगठनों, 'महासभा' 'परिषद', 'महासमिति', 'भारतीय जैन मिलन' आदि के साथ सम्पर्क
पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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