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के लिये प्रेरणाएं मिलीं। इसी का सुफल था कि उन्होंने अपने हिन्दी-लेखन से एक ओर जहां जैन-सिद्धांतों का प्रचार कथा-कहानियों के माध्यम से किया, वहीं उन्होंने हिन्दी को सबल बनाने का भी अथक प्रयत्न किया। बीसवीं सदी के प्रारम्भिक लगभग 5 दशकों तक भगवत् जी अपनी रचनाओं के माध्यम से जैन एवं जैनेत्तर समाज पर छाये रहे। उनकी निम्नलिखित रचनाएं ख्याति प्राप्त रहीं___ 1. सुकुमाल-महामुनिचरित (तीन खण्डों में), 2. सुखानन्द-मनोरमा चरित्र (दो खण्डों में), 3. भगवत-लावनी-शतक-संग्रह, 4. भगवान् पार्श्वनाथ की पूजा।
इनकी बहुमखी सेवाओं को ध्यान में रखते हुए स्थानीय जैन समाज की ओर से आपके सम्मानार्थ आपको एक अभिनन्दन-ग्रन्थ भेंट किया गया।
कविवर भगवत्स्वरूप भगवत कविवर भगवत्स्वरूप (एत्मादपुर आगरा) का जन्म सन् 1911 में हुआ। सुधारवादी लेखकों में इनकी गणना की जाती है। इनके लगभग 20 ग्रन्थ प्रकाशित हैं। इनकी अनेक रचनाएं सरस्वती (मासिक, प्रयाग), विचार, अभयुदय, अनेकान्त, जैन-मार्तण्ड, जैन-सदेश, जैन-गजट आदि में प्रकाशित होती रहीं।
पं. रामप्रसाद जी शास्त्री स्वनामधन्य पं. रामप्रसाद शस्त्री (जटौआ, आगरा, सन् 1889-1991 ई.), जो कि श्रद्धेय पं. गजाधर लाल शास्त्री न्यायतीर्थ के ज्येष्ठ भ्राता थे, उनका व्यक्तित्व भी कम प्रेरक नहीं। वे सुप्रसिद्ध हिन्दी ग्रन्थरत्नाकर कार्यालय बम्बई तथा माणिक चन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला बम्बई के मानद् सम्पादक प्रारम्भ रहे उन्होंने भूलेश्वर जैन विद्यालय बम्बई में अध्यापन-कार्य किया।
पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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