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प्रभावित होकर गुरु गोपाल दास जी बरैया ने इनके घर जाकर इनकी माता से भिक्षा स्वरूप उन्हें मांगा था। पण्डित जी की यह विशेषता थी कि वे स्वयं ही सप्तम प्रविमाधारी थे तथा उनकी पत्नी पंचम प्रतिमाधारी।
उनके द्वारा निम्नलिखित रचनाएं प्रथम बार सम्पादित, अनुदित होकर पाठकों के हाथों में आईं थीं
1. न्यायदीपिका (सन् 1913) प्रकाशित, 2. गोम्मटसार-जीवकाण्ड (सन् 1916) प्रकाशित, 3. महावीर-पुराण (असग) प्रकाशित, 4. अनगार-धर्मामृत-अनु. प्रकाशित, 5. रत्नत्रय-चन्द्रिका प्रथम भाग, मौलिक, अप्रकाशित, 6. रत्नत्रय-चन्द्रिका द्वितीय भाग, मौलिक, अपूर्ण,
ये दोनों ग्रन्थ 'रत्नकरण्ड-श्रावकाचार' के प्रथम 40 श्लोकों के भाष्य रूप में 414 पृष्ठों में लिखे गये थे। 7. सम्यग्दर्शन-स्तोत्रम् (संस्कृत के गेय छन्दों में) 8. आदिपुराण-समीक्षा (अप्रकाशित), 9. आध्यात्मिक-भजन-संग्रह (अप्रकाशित)
पण्डित जी अच्छे समीक्षक एवं पत्रकार भी थे। उनके द्वारा सम्पादित निम्नलिखित पत्रिकाएं प्रसिद्ध थीं
1. सत्यवादी, एवं, 2. श्रेयोमार्ग।
पं. गौरीलाल जी शास्त्री सिद्धान्त-शास्त्री, जाति-भूषण, धर्म-दिवाकर जैसी उपाधियों से विभूषित पं. गौरीलाल जी सिद्धान्त-शास्त्री का जन्म बेरनी (एटा) में हुआ था। 347
पद्मावतीपुरवाल दियम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास