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विद्यावारिधि पं. मक्खनलाल जी शास्त्री जैन दर्शन एवं अध्यातम के प्रकाण्ड विद्वान पं. मक्खनलाल जी शास्त्री का जन्म चावली (आगरा) में सन् 1906 के आसपास हुआ। इनके भाई पं. लालाराम जी शास्त्री संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान थे, जिन्होंने लगभग 100 ग्रन्थों की टीकाएं लिखीं। अपनी विद्वत्ता के कारण उन्हें धर्मरत्न एवं धर्मवीर की उपाधियों से सम्मानित किया गया था।
पण्डित मक्खनलाल जी गुरुणां गुरु पं. गोपालदास जी बरैया के अन्यतम शिष्य थे तथा गुरु-दक्षिणा के रूप में गुरु जी द्वारा संस्थापित मुरैना विद्यालय को उन्होंने अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया था। उनके द्वारा पढ़ाए गये विद्वानों में पं. डॉ. लाल बहादुर शास्त्री, पं. फूलचंद्र जी सिद्धान्त शास्त्री, पं. वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री (शोलापुर), पं. मल्लिनाथ शास्त्री मद्रास, पं. कुंजीलाल शास्त्री, पं. भागचन्द्र शास्त्री, पं. जिनचन्द्र शास्त्री, पं. श्रेयांस कुमार जी शास्त्री काव्यतीर्थ, पं. नागराज जी शास्त्री, पं. धर्मचक्रवर्ती शास्त्री, पं. मुन्नालाल शास्त्री, तथा अपनी-अपनी मुनि-दीक्षा के पूर्व आचार्य विमलसागर जी, मुनि पार्श्वसागर जी, मुनि प्रबोधसागर जी, भट्टारक देवेन्द्र कीर्ति, भट्टारक लक्ष्मीसेन आदि अखिल भारतीय स्तर के विद्वान प्रमुख हैं।
एक ओर पण्डित जी ने धुरन्दर विद्वानों को तैयार किया, तो दूसरी ओर उन्होंने अत्यन्त दुरूह जैन ग्रन्थों की टीकाएं लिखी, जिनमें से तत्त्वाराजवार्तिक, पंचाध्यायी, पुरुषार्थसिन्युपाय विशेष रूपेण उल्लेखनीय है।
पण्डित जी युग शास्त्रार्थ का युग था। जैनेतर लोग जैन-सिद्धान्तों की समय-समय पर अवमानना किया करते थे, अतः उनके उत्तर स्वरूप तथा आम जनता के प्रमों को दूर करने के लिए सम-सामयिक समस्याओं को लेकर वे तर्कसंगत किन्तु सीधी सादी सरल भाषा-शैली में ट्रेक्ट्स भी लिखा करते थे। जिनमें से कुछ प्रमुख अग्र प्रकार हैं
पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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