Book Title: Padmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Author(s): Ramjit Jain
Publisher: Pragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut

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Page 384
________________ जन्मकाल में ये इतने कृशकाय थे कि माता-पिता इन्हें मोटी रूई में लपेट कर रखते थे और तभी उन्हें गोद में ले पाते थे। पण्डित जी ने जवाहरात, स्टेशनरी तथा प्रिंटिंग-प्रेस खोलकर उसे अपनी आजीविका का साधन बनाया और मानद रूप से विद्यालय में जैन-सिद्धान्त का अध्यापन-कार्य किया। पद्मावती-पुरवाल समाज के गौरव की अभिवृद्धि में पण्डित जी का विशेष योगदान रहा। यदि इन्होंने पद्मावती-पुरवाल समाज को जागृत न किया होता, तो वह सम्भवतः अपना अतीतकालीन गौरव भी भूल जाता और सम्भवतः वह अपने गोत्रों का भी स्मरण न कर पाता। __ पण्डित जी प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने अपने समाज की जनगणना कराई और उसे पुस्तकाकार रूप प्रकाशित कराया। इनकी निम्न रचना विशेष रूप से प्रसिद्ध हुई। 1. रत्नकरण्ड श्रावकाचार की हिन्दी टीका तथा उस पर उन्होंने आचार्य प्रभाचन्द्र की संस्कृतक-टीका संयुक्त कर उसके विशिष्ट शब्दों की निरुक्ति लिखी। लेखन के अतिरिक्त पण्डित जी समीक्षक एवं कुशल पत्रकार भी थे। उन्होंने दीर्घकाल तक जैन-सिद्धांत पत्रिका का सम्पादन किया। वृद्धावस्था में पण्डित जी ने आचार्य शान्तिसागर जी महाराज से सप्तम प्रतिमा धारण की थी। न्याय-दिवाकर पं. पन्नालाल जी प्रातः स्मरणीय न्याय-दिवाकर पं. पन्नालाल जी जारखी (एत्मादपुर, आगरा) का व्यक्तित्व एवं कृतित्व किसे मोहित न करेगा? अपने बाल्यकाल में पण्डित जी कुछ क्रोधी एवं स्वाभिमानी प्रवृत्ति के पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 348

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