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सौन्दर्य की पवित्रता एवं मादकता, प्रेम की निश्छलता एवं विवशता, प्रकृति जन्य सरलता एवं मुग्धता, श्रमण-संस्था का कठोर आचरण, माता-पिता का वात्सल्य, पाप एवं दुराचारों का निर्मम दण्ड, वासना की मांसलता का प्रक्षालन, आत्मा का सुशान्त निर्मलीकरण, रोमांस का आसव एवं संस्कृति के पीयूष का मंगलमय सम्मिलित, प्रेयस् एवं श्रेयस् का ग्रन्थिबन्ध और इन सबसे ऊपर अपार-त्याग एवं कषाय-निग्रह का निदर्शन समाहित है। .
रइधू के प्राय समस्त पात्र यद्यपि पौराणिक आदर्शों पर प्रतिष्ठित हैं, फिर भी, उनके जीवन में वैभव-विलास की रंगरलियां युग-प्रभाव से चर्चित है। उदारता, प्रेम, त्याग और अहिंसा का पानक उनके पात्रों के जीवन में अपूर्व-रस का संचार करता है। संक्षेप में कह सकते हैं कि प्रबन्धात्मक आख्यानों में महाकवि रइधू की निम्नलिखित उपलब्धियां परिलक्षित होती हैं1. पौराणिक पात्रों पर युग-प्रभाव, 2. प्रबन्ध-काव्यों में पौराणिकता रहने पर भी कवि द्वारा स्वेच्छा या प्रबंधों
का पुनर्गठन, 3. बहुमुखी कुशल-प्रतिभा, 4. पौराणिक प्रबन्धों में काव्यत्व का संयोजन, 5. प्रबन्धावयवों का संतुलन एवं उनमें मर्मस्थलों का संयोजन, 6. प्रबन्ध-काव्यों में उद्देश्य-दृष्टि की समता किन्तु आद्यन्त-अन्विति की __ दृष्टि से पात्र-चरित्रों की पृथकता, 7. सिद्धान्त-प्रस्फोटन के लिए आख्यान का प्रस्तुतिकरण तथा बहुमुखी
प्रतिभा द्वारा सिद्धान्तों की सरल रीति से प्रस्तुति, 8. विषयों का क्रम-नियोजन तथा जटिल दार्शनिक-विषयों का भी काव्य के परिवेश में प्रस्तुतिकरण,
पावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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