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नगरों तथा देश के नाम पर हुआ है। जैसे पल्ली से पालीवाल, खाईला से खण्डेलवाल, अग्रोहा से अग्रवाल, जायस से जैसवाल, चन्देरी से चन्देरया, ओसा से. ओसवाल, चन्द्रबाडा से चांदवाड, विहोली से विटोलिया, गोल्ल-देश से गोलापूर्व, गोलालबरे उसी प्रकार पगावती से पद्मावतीपुर वाले आदि । भाषा-विज्ञान का यह नियम है कि समय-समय पर व्यक्तिवाची संज्ञाओं में स्थानीय प्रभावों अथवा अन्य कारणों से दीर्धीकरण, इस्त्रीकरण, संक्षेपीकरण आध-अक्षर लोप, अन्त्याक्षर-लोप, वर्ण-व्यत्यय आदि कारणों से अथवा मुख-सौकर्य के कारण भी प्रचलित नामों से कुछ परिवर्तन होते रहते हैं। इन नियमों के आधार पर यदि विचार करें तो ऐसा भी प्रतीत होता है कि प्रारम्भ में पद्मावती-पुरवाल समाज बहुसंख्यक था और वह पोरवाल, पुरवार, परवार भी पद्मावती-पुरवाल समाज के ही अंग रहे होंगे, जो परवर्ती कालों में किन्हीं कारण-विशेषों से अपनी पृथक-पृथक पहिचान बनाते गये। वस्तुतः यह समाजशास्त्रीय-विषय जितना जटिल एवं गंभीर है, उतना ही रोचक भी। अतः इसकी निष्पक्ष शोध-खोज की जानी चाहिए। __ अपभ्रंश-साहित्य में पद्मावती नगरी के लिए 'पोमावइ, पउमावइ आदि के भी उल्लेख मिलते हैं। खजुराहो में उपलब्ध वि.सं. 1052 के एक शिलालेख (द.-Epigraphica Indica, Vol. I.P. 149) के अनुसार पद्मावती पुरी भारत की विशिष्ट समृद्ध एवं सुन्दर नगरियों में से एक मानी जाती थी। विष्णु पुराण (4/24), सरस्वती कण्ठाभरण एवं मालतीमाधव (संस्कृत) नाटक में भी उसके ऐसे ही सुन्दर विस्तृत वर्णन मिलते हैं। इन वर्णनों से यह स्पष्ट होता है कि पद्मावती-पुरी भारतीय नगरियों में अपना विशेष उल्लेखनीय महत्त्व रखती थी।
चौरासी प्रकार की जैन-जातियों में से एक जाति का नाम पद्मावती-पुरवाल भी है, जो ग्वालियर, आगरा, एटा, मैनपुरी, फिरोजाबाद आदि के जनपदों में विशेष रूप से तथा सामान्यतया भारत भर में यत्र-तत्र फैली हुई है। 331
पावतीपुरबाल दिसम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास