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जैन संस्कृति के विकास में पद्मावतीपुरवाल समाज का योगदान
-प्रो. (डॉ.) राजाराम जैन
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पृष्ठभूमि उद्भव - इतिहास
पद्मावती-पुरवाल जाति का इतिहास कब से प्रारम्भ हुआ, यह कहना तो कठिन है किन्तु उसके आचार-विचार, जिनवाणी सेवा एवं बहुआयामी रचनात्मक कार्य-कलाप देखकर उसके सुसंस्कृत एवं सुसमृद्ध अतीत का आभास अवश्य होता है ।
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कभी-कभी ऐसा भी होता रहा है, कि किन्हीं विशेष कारणों से प्राच्यकालीन इतिहास सिमटता-सिमटता सूत्रात्मक लोक-गाथाओं का रूप भी धारण कर लिया । पद्मावती-पुरवाल जाति के विषय में भी सम्भवतः ऐसा ही हुआ है। इसके उद्भव के विषय में कुछ दन्त-कथाएं उपलब्ध होती है, किन्तु उनमें कितना तथ्यांश है, यह कहना तो कठिन ही है, किन्तु इतिहास -सम्मत एक कथा ऐसी भी उपलब्ध है, जिससे पद्मावती-पुरवाल जाति के उद्भव के विषय में विचार किया जा सकता है। उस कथा का सम्बन्ध है तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ से । देश-विदेश के प्राध्य-विद्याविदों सर्वसम्मति से उन्हें (पार्श्व के लिए) एक ऐतिहासिक महापुरुष मान लिया है।
पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास