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________________ duniyada N जैन संस्कृति के विकास में पद्मावतीपुरवाल समाज का योगदान -प्रो. (डॉ.) राजाराम जैन RA 329 Ar " ' PA SA पृष्ठभूमि उद्भव - इतिहास पद्मावती-पुरवाल जाति का इतिहास कब से प्रारम्भ हुआ, यह कहना तो कठिन है किन्तु उसके आचार-विचार, जिनवाणी सेवा एवं बहुआयामी रचनात्मक कार्य-कलाप देखकर उसके सुसंस्कृत एवं सुसमृद्ध अतीत का आभास अवश्य होता है । 1. कभी-कभी ऐसा भी होता रहा है, कि किन्हीं विशेष कारणों से प्राच्यकालीन इतिहास सिमटता-सिमटता सूत्रात्मक लोक-गाथाओं का रूप भी धारण कर लिया । पद्मावती-पुरवाल जाति के विषय में भी सम्भवतः ऐसा ही हुआ है। इसके उद्भव के विषय में कुछ दन्त-कथाएं उपलब्ध होती है, किन्तु उनमें कितना तथ्यांश है, यह कहना तो कठिन ही है, किन्तु इतिहास -सम्मत एक कथा ऐसी भी उपलब्ध है, जिससे पद्मावती-पुरवाल जाति के उद्भव के विषय में विचार किया जा सकता है। उस कथा का सम्बन्ध है तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ से । देश-विदेश के प्राध्य-विद्याविदों सर्वसम्मति से उन्हें (पार्श्व के लिए) एक ऐतिहासिक महापुरुष मान लिया है। पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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