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एवं समन्वय स्थापित कर अपने जातीय अस्तित्व का उन्हें बोध
कराते रहना चाहिए। 9. अपनी मूल निकासी के गांवों को छोड़कर नगरों और महानगरों में
आये लोगों को अपने मूल स्थान पर अपने पूर्वजों द्वारा बनाये मंदिरों व अन्य भवनों अथवा उनके खंडहरों पर पद्मावती पुरवाल जाति का शिलालेख होना चाहिए ताकि भविष्य में इस जाति की प्राचीनता प्रमाणित हो सके। वर्ष में किसी एक दिन वहां छोटा सा कार्यक्रम
भी स्थानीय स्तर पर होना चाहिए। 10. देश के विभिन्न अंचलों की पंचायतें, संगठन एवं इकाइयों के संगठित
हो जाने पर एक अखिल भारतीय संगठन होना चाहिए, जो संकीर्णताओं से ऊपर उठकर समाज का सही नेतृत्व कर सके और जातीय गौरव के लिए कुछ रचनात्मक कार्य कर सके। प्रगतिशील पद्मावतीपुरवाल
दिगम्बर जैन संगठन निश्चित ही इस परिधि में नहीं आ सकता। 11. पद्मावती पुरवाल जाति के समस्त विद्वानों, श्रेष्ठी वर्ग, समर्पित
कार्यकर्ताओं का एक मात्र उद्देश्य बिना किसी पद की आकांक्षा के समाज की सही मार्गदर्शन करना और सहयोग देना होना चाहिए। पद की लालसा अथवा पद पर न रहने पर समाज सेवा से विमुख हो जाना प्रशंसनीय अथवा अनुकरणीय नहीं हो सकता।
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पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास