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तत्पश्चात् बाबू सांवलदास जैन कुतुकपुर (आगरा) निवासी को लाला हजारी लाल मंत्री, पारमार्थिक संस्था पं. गौरीलाल सिद्धान्तशास्त्री द्वास हीरालाल जैन विद्यालय से संस्थाओं के मैनेजर के पद पर सन् 1917 में लाये। उक्त बाबू साहब ने मैनेजर के पद पर 12 वर्ष बड़ी योग्यता से संस्थाओं की सेवा की। इस अवधि में बाबू साहब ने पं. अमोलकचन्द जी के सहयोग से उत्तर प्रान्त के पद्मावती पुरवाल विद्यार्थियों को संस्थाओं की शिक्षा की दिशा में प्रेरणा देकर अनेक विद्यार्थियों को छात्रावास में आश्रय दिलाया जिनमें स्वर्गीय रामस्वरूपजी, श्री बाबू देवचन्दजी, श्री अशर्फीलालजी उल्लेखनीय हैं।
मास्टर रामस्वरूपजी ने कानून की परीक्षा पास करके स्वर्गीय सेठ साहब के यहां सर्विस कर ली। अपना निजी पुस्तकों और स्टेशनरी का व्यापार जमाया। अपने सब भाइयों को एटा से लाकर व्यापार में लगाया
और इन्दौर के स्थाई निवासी बन गये। इन सब भाइयों का मुख्य व्यवसाय पुस्तक विक्रय, प्रकाशन और मुद्रण है। .
बाबू देवचन्द जी ने एम.ए. तक अध्ययन के बाद कल्याणमल मिल में सर्विस की। आप मिल में लेबर आफिसर और इन्दौर निगम में काउंसिलर रहे हैं। बाबू अशर्फीलालजी ने भी मिल में महत्वपूर्ण पद पर काम किया। इनका निजी सर्राफे का व्यवसाय भी है जिसे इनके पुत्र संभाल रहे हैं।
शोलापुर निवासी (मूल निवासी बेरनी, एटा) के पं. बंशीधर शास्त्री के सुपुत्र श्री पं. श्रीधर शास्त्री ने 1944 में इन्दौर में अपना निजी प्रेस 'चिन्तामणि प्रिन्टिंग प्रेस' के नाम से चालू किया, जिसमें बहुधा मध्य प्रदेश गवर्नमेंट का ही काम छपता है। पं. जी ने अपने पांचों पुत्रों को उच्च शिक्षा दी है।
बाबू सांवलदास जी के सन् 1928 में निधन के बाद भाई जयकुमार जो
पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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