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प्रतिभावान, साहित्यकार के साथ-साथ उच्चकोटि के चिकित्सक भी थे। आपने निम्नलिखित प्रमुख ग्रन्थों एवं पुस्तकों की रचना की, जो आपकी चहुंमुखी प्रतिभा के हस्ताक्षर हैं।
1. चतुर्विशति शासन देवी विधान; 2. क्या हम अहिंसक हैं ?; 3. स्याद्वाद सूर्य; 4. गन्धक कल्प; 5. मायाबीज कल्प; 6. गणधर गणेश विधान; 7. गणधर गणेश पूजन एवं दीप मालिका पूजन; 8. वृहत् जैन विवाह विधि इत्यादि आपकी रचनाएं हैं। इसके अतिरिक्त स्याद्वाद मार्तण्ड मासिक पत्रिका का आपने सम्पादन एवं प्रकाशन किया।
आप (1) दिव्यौषधि शोध खोज केन्द्र (2) योग मन्त्र यन्त्र का शोध संस्थान ( 3 ) प्रांग ऐतिहासिक ज्ञान कला केन्द्र (4) श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ दि. जैन सरस्वती भवन ( 5 ) श्री गणधर गणेश प्रकाशन आगरा के आजीवन संस्थापक संरक्षक रहे। आपके विवाहित दो पुत्र एवं विवाहित दो पुत्रियां हैं। पुत्रगण पर्यटन परिवहन एवं इलेक्ट्रोनिक्स एंड कम्युनिकेशन का व्यवसाय करते हैं। आपका हृदयगति रुकने से दिनांक 24 अक्टूबर 1985 को देहावसान हुआ ।
श्री कैलाशचंद जैन, कोलकत्ता
फीरोजाबाद जिले के फरिया जनपद के श्री नेमीचंद जी 1940 के आसपास व्यवसाय के लिए कोलकाता पहुंचे। कुछ दिनों बाद उनके 2-3 पुत्र भी वहां पहुंचे। भारत ट्रेडर्स के नाम से घी तेल और चीनी के व्यवसाय को आगे बढ़ाया। श्री नेमीचंद के स्वर्गवास के बाद कलकत्ते में पारिवारिक, व्यापारिक और सामाजिक उत्तरदायित्व श्री कैलाशचंद पर आ गया। श्री कैलाशचन्द जी श्री नेमीचन्द जी के दूसरे पुत्र हैं। बड़े पुत्र स्व. श्री प्रकाश जी पटना में रहते थे वहां से वह गाजियाबाद आ गये थे और थोड़े समय बाद यहां उनका स्वर्गवास हो गया। श्री कैलाश जी मिलनसार,
पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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