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साहित्य सदन को स्थापित किया। आपके यहां से कई महत्वपूर्ण पुस्तकों . का प्रकाशान हो चुका है। . . . . . . . . . .".
आप राष्ट्र भाषा हिन्दी के अनन्य सेवक वे तथा हिन्दी की सतत् सेवा साधना में अहर्निश प्रयत्नशील रहे। आपके द्वारा रचित उपदेशात्मक पध तथा लेख प्रत्येक व्यक्ति के लिए जीवनोपयोगी है। ... !
अ. भा. पद्मावती-पुरवाल संघ के आप कई वर्षों तक अध्यक्ष रहें तथा समाज सेवा करते रहे। इन्दौर समाज के आप कोषाध्यक्ष थे। इन्दौर पुस्तक विक्रेता एवं प्रकाशक संघ के आप संस्थापक व सभापति थे। सीमित शब्द और महान कार्य की उक्ति को चरितार्थ करते हुए शान्त प्रकृति, गंभीर विचारक तथा भावनापूर्ण स्वच्छ हृदय के आय प्रतिकृति के। आपके पुत्र श्रीकान्त, शशिकान्त तथा चन्द्रकान्त का अल्प आयु में निधन हो गया। आपके पुत्र अनेकान्त भोपाल में तथा सूर्यकान्त व दिनेशकान्त इन्दौर में पुस्तक व्यवसाय में अग्रणी हैं। . . . .
स्व. ब्रह्मचारी श्री सूरजमल जैन प्रतिष्ठाचार्य भारतवर्ष की धर्म धरा ने अनेक मूर्धन्य विद्वानों को जन्म दिया है। इसी कड़ी में जैन समाज एवं पद्मावती पुरवाल समाज का एक और मोती जुड़ा, वह नाम था-प्रतिष्ठाचार्य ब्रह्मचारी श्री सूरजमल जैन। _पू. ब्रह्मचारी श्री सूरजमल का जन्म मंगसिर कृष्णा प्रतिपदा सं. 1978 को मध्य प्रदेश के भोपाल शहर के निकट जामुनिया ग्राम में हुआ था। आपके पिता श्री मथुरा प्रसाद एवं माता श्रीमती महताब बाई थीं। आपके 2 भाई एवं छः बहनें थीं। बाल्यकाल में माता-पिता के असामयिक स्वर्गवास से आपको अनेक संकटों से जूझना पड़ा एवं जीवन त्यागमयी रहा। । संयोगवश बीसवीं सदी के प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवर्ती अवार्य 108 श्री शान्तिसागर जी महाराज के प्रथम पट्टाचार्य 108 श्री. वीरसागर जी
पावतीपुस्वास दिगम्बर जैन जाति का अनुभव और विकास
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