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जी ने श्री महावीर प्रसाद जी को मां और बाप दोनों का प्यार दिया। पुनर्विवाह नहीं किया। श्री महावीरप्रसाद जी की प्राइमरी शिक्षा पूरी होते ही उन्हें मथुरा के गुरुकुल में पढ़ने के लिए भेज दिया। शिक्षा प्राप्त कर वापस आने के बाद भी उन्होंने और शिक्षा प्राप्त की। साथ ही पिताजी के साथ उस कार्य को आगे बढ़ाया। 1949 में श्री महावीर प्रसाद जी का चमकरी के एक प्रतिष्ठित परिवार की कन्या के साथ विवाह हो गया। थोड़े ही दिनों में परिवार में एक फूल खिला। यह थी उस परिवार की खुशियों की शुरुआत।
श्री महावीरप्रसाद जी अपने क्षेत्र में और श्री अमृतलाल जी अपने क्षेत्र में निरंतर जागरुक और सक्रिय रहे। दिल्ली में पद्मावती पुरवाल दिगम्बर जैन पंचायत के गठन, मंदिर के निर्माण, जीर्णोद्धार और वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव तक श्री अमृतलालजी पूरी तरह सक्रिय रहे। 1981 में श्री अमृतलालजी का स्वर्गवास हो गया। उनके पुत्र श्री महावीरप्रसाद जी पंचायत के कोषाध्यक्ष और बाद में अध्यक्ष निर्वाचित हुए। उनके नेतृत्व में बनी कार्यकारिणी के कार्य काल में दिल्ली की पद्मावतीपुरवाल जाति में पारस्परिक सहयोग और समाव का वातावरण बना। श्री महावीरप्रसाद जी के पुत्र श्री राजेन्द्रकुमार पंचायत की पिछली कार्यकारिणी में और दूसरे पुत्र श्री पवनकुमार वर्तमान कार्यकारिणी के सदस्य हैं। परिवार में सम्पन्नता, एकता और धर्म के प्रति समर्पण है।
स्व. श्री मुंशीलाल जैन कागजी आगरा जिले के खैरगढ़ जनपद के श्री मुंशीलाल जी 1917-18 में दिल्ली आये। धर्मपुरा में अपना निवास बनाकर चावड़ी बाजार में कागज का काम शुरू किया। 1924 में श्री सुखनन्दलाल जी की कन्या से इनका
पावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास .
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