________________
कमलकुमार जी 1941-42 में दिल्ली के अशान्त वातावरण से शांति पाने अपनी रिश्तेदारी में महाराजपुर गांव अपने परिवार के साथ चले गये। थोड़े समय बाद 1948 में हैजे की बीमारी में उनका वहीं पर स्वर्गवास हो गया। उनके इकलौते पुत्र श्री अतरचन्द जैन अपनी मां और बहन के साथ वहीं रहे। शिक्षा पूरी करके विवाह उपरान्त पूरे परिवार के साथ वह दिल्ली आये और गांधीनगर को अपना निवास और कार्यक्षेत्र बनाया। गांधीनगर की पदमावती पुरवाल समाज के वे चौधरी हैं। पं. जिनवरदास जी के दूसरे पुत्र श्री भूपेन्द्र कुमार जी भी दिल्ली से गांधी नगर चले गये। वे ग्रहस्थाचार्य के कार्य के साथ कपड़े का व्यवसाय भी करते हैं।
श्री मनीराम जी के दूसरे पुत्र श्री नन्नूमल जी अविवाहित थे। तीसरे पुत्र श्रीलाल जी के कोई पुत्र नहीं था। श्री नन्नूमल जी और श्रीलाल जी धर्मपुरा में पुस्तकों की दुकान करते थे। उनका वर्द्धमान प्रिंटिंग प्रैस भी था। श्री नन्नूमल जी में कार्य करने का अद्भुत उत्साह था। अपनी बात कहकर दूसरे को प्रभावित करने की भी उनमें क्षमता थी पर शरीर से अपाहिज थे। इतना होने पर भी उन्हें धर्म, संगठन और लोक व्यवहार का अच्छा ज्ञान था। उनकी सतत् प्रेरणा से युवकों को पंचायत के काम करने की रुचि बनी रहती थी। भगवान आदिनाथ के निर्वाण महोत्सव पर मंदिरजी में लड्डू चढ़ाने और बाद में रथ यात्रा के माध्यम से धर्म प्रभावना का निर्णय कराके कार्य रूप में परिणत करने में उनका भी योगदान रहा। श्री नन्नूमल जी 1965 और श्री श्रीलाल जी का 1964 को स्वर्गवास हो गया।
आचार्य श्री सन्मतिसागरजी महाराज का जब गांधीनगर दिल्ली-31 में वर्षा योग हुआ, उस समय श्री अतरचन्द जी वहां की समाज के चौधरी थे। आचार्य श्री की प्रेरणा और आशीर्वाद से श्री पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन पंचायत धर्मपुरा दिल्ली-6 और श्री पद्मावतीपुरवाल समाज पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
230