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और बड़े भाई श्री महावीर प्रसादजी की आज्ञा का हमेशा पालन करते थे। मेले दशहरे में इष्ट-मित्रों एवं परिवार के सभी सदस्यों के साथ जाकर खाना पीना और आनन्द लेना उनका स्वभाव था। अपने और पराए का वे भेद नहीं करते थे। श्री जवाहरलाल और श्री चन्द्रशेखर उनके दो पुत्र हैं। श्री चंद्रशेखर जी पंचायत के 5-6 वर्ष कार्यकारिणी के सदस्य और बाद में 4 वर्ष सह-सचिव रहे हैं। श्री जवाहरलाल जी और उनके पुत्र भी अब पंचायत की गतिविधियों से निकट से जुड़े हैं और सहयोग देते हैं।
पूरा परिवार धार्मिक और मिलनसार है।
स्व. श्री नेमीचन्द डालचन्द जैन जलेबी वाले आगरा जिले के ग्राम हर्रा की गढ़ी के लाला फूलचन्द जी अपने परिवार के साथ 1922-23 में दिल्ली आये। यहां अपने दो पुत्रों के साथ उन्होंने खाने-पीने के खोमचे लगाने का काम किया। तीसरे पुत्र श्री अटलचन्द जी घर, बाजार और परिवार के कामकाज देखते थे। चौथे और पांचवें पुत्र क्रमशः सर्वश्री मोतीराम और गुलजारीलाल कुँचा सेठ के जैन स्कूल में पढ़ते थे। उस समय इनका निवास भी मस्जिद खजूर धर्मपुरा में था। 1929 में लाला फूलचंद जी का स्वर्गवास हो गया।
काम से पर्याप्त आय होने पर इन्होंने कुछ जायदाद खरीदी। काम को और अधिक गति दी। 1940 में उन्होंने दरीबे की दुकानें किराये पर ली और जलेबी की दुकान की। बाद में उन दुकानों को खरीदा भी। खाने पीने की चीजें और होटल आदि के रूप में व्यापार बढ़ता गया। जैसे-जैसे परिवार की सदस्य संख्या बढ़ी व्यवसाय में भी विविधता आई। इसी बीच श्री मोतीराम जी और श्री गुलजारीलाल जी भी व्यापार में आ गये।
1958 में श्री डालचन्द जी का और श्री नेमीचन्द जी का 1971 में स्वर्गवास हो गया। श्री नेमीचन्द के बड़े पुत्र श्री ज्ञानचन्द का 1980 में 238
पद्मावतीपुरबाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास