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अपनी सम्पूर्ण पहचान थी। फिरोजाबाद नगर कांच के उत्पाद के कारण उत्तर भारत में एक प्रमुख व्यावसायिक केन्द्र था। यह भी एक संयोग ही है कि फिरोजाबाद और उसके आसपास के करीब 80-100 किलोमीटर की परधि में बसे ग्राम देहातों में स्वतंत्रता पूर्व जैन आवादी में पद्मावती पुरवाल जाति का ही बाहुल्य था। इन्हीं ग्राम देहातों से आकर इस जाति के लोग फिरोजाबाद को अपना कर्मक्षेत्र बना कर यहां स्थाई तौर पर बस गये हैं। आज नगर में जैन समाज की आबादी में पदमावती पुरवाल जाति की बहुलता हैं आजादी से पूर्व इस जाति के लोगों का अधिकांश भाग उस समय के आगरा, एटा, मैनपुरी जनपदों के धुर देहातों में रहते हुए भी अपनी विद्वता के कारण पूरे देश के जैन समाज में जाना पहाना जाता है।
जैन गजट में प्रकाशित ‘आगरा मण्डल के जैन रत्न' आलेख में इस पूरे मण्डल के प्राचीन इतिहास पर एक सामान्य दृष्टि डालने का प्रयास इस लेखक ने किया था। उक्त लेख भी इस ग्रन्थ में प्रकाशित है। किन्तु इस क्षेत्र या इस जाति के प्राचीन इतिहास को पूर्णता प्रदान नहीं करता। इस विषय पर आगे और सार्थक प्रयास करने की महती आवश्यकता है।
फिरोजाबाद नगर में बीसवीं सदी के तीसरे-चौथे दशक में पद्मावती पुरवाल समाज का सामाजिक संगठन ढांचा अपना रूप ग्रहण कर चुका था। उस समय समाज की अपनी विधिवत पंचायत और उसकी गतिविधियां सामाजिक संरचना को एक मजबूत आधार प्रदान कर चुके थे। यह समय ऐसा था जब ग्राम देहातों से इस जाति के लोग नगरों में आकर अपने व्यवसाय आदि की स्थाई व्यवस्था के साधन खोजने लगे थे। समाज के दूर दृष्टा लोगों को लगा कि समाज के आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्ग के लिए एक ऐसी व्यवस्था बनाई जानी चाहिए जिससे लोगों को व्यवसाय आदि के लिए आर्थिक आधार बन सके। इस अवधारणा को मूर्तिरूप देने के लिए पद्मावती पुरवाल पंचायत ने 'पद्मावती पुरवाल फण्ड कमेटी'. के नाम से एक आर्थिक आधारवाली संस्था की स्थापना की। फण्ड कमेटी पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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