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बसंतकुमार रतनचंद जैन कलकत्ता ने यह पाटिया लगवाया। वि.सं. 2498
(जीव तू भ्रमत सदैव अकेला) विश्व का पहला तीस चौबीसी मंदिर-सम्पूर्ण मध्य लोक के दसों कर्मभूमि क्षेत्रों (5 भरत व 5 एरावत क्षेत्रों) में विगत उत्सर्पिणी व वर्तमान अवसर्पिणी काल मे जन्मे तथा आगत उत्सर्पिणी काल में जन्मने वाले (इस प्रकार तीस कोड़ा-कोड़ी सागर वर्षों की कालावधि के) तीस चौबीसी तीर्थंकरों का विशाल मंदिर स्व. आचार्य श्री विमलसागर म. की कल्पना का प्रसून है जिसका निर्माण उन्हीं के पट्टधर शिष्य आ. श्री भरतसागर म. के सक्रिय मार्गदर्शन में हुआ है। इसे विश्व का पहला तीस चौबीसी मंदिर घोषित किया गया है।
कामदेव मंदिर-विश्व में प्रथम बार निर्मित उपरोक्त तीस चौबीसी मंदिर के परिसर में एक कामदेव मंदिर का भी निर्माण किया गया है जिसकी प्रतिष्ठा श्री बीस चौबीसी मंदिर के साथ की गई है। इस कामदेव मंदिर को भी जैन समाज में प्रथम बार निर्मित होने का गौरव प्राप्त है।”
विमल समाधि मंदिर-साधु मंदिर-आचार्य श्री विमलसागर म. के समाधि-स्थल पर आचार्य श्री के समाधि मंदिर का भी निर्माण किया गया है जिसके एक कक्ष में आचार्य श्री का आशीर्वाद की मुद्रा युक्त वात्सल्यमयी प्रतिमा तथा दूसरे कक्ष में उनके चरण स्थापित किये गये
उदयगिरि-खण्डगिरि वर्तमान उड़ीसा प्रान्त (पूर्व का कलिंग देश) की राजधानी भुवनेश्वर के निकट जैन तीर्थ उदयगिरि-खण्डगिरि। पहले यह पर्वत कुमारी पर्वत नाम से प्रसिद्ध था और अत्यन्त पवित्र माना जाता था। कुमारी पर्वत के खण्ड होने से दो भाग हो गये-1. खण्डगिरि (खण्ड होने से) 2. उदयगिरि (सूर्योदय की किरण पड़ने से) खण्डगिर पर्वत पर जिनालय है तथा पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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