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पाटिया लगा है।
मंदिर शिखरबन्द है।
धर्मशाला-सोनागिर सिद्धक्षेत्र पर तलहटी में यात्रियों के लिए 29 धर्मशालाएं व शासकीय रेस्ट हाउस है। इनमें पद्मावती पुरवाल मंदिर नं. 5 की धर्मशाला मंदिर नं. 11 आमोल वाली धर्मशाला के पीछे दो धर्मशालाएं आमने-सामने हैं। इन दोनों धर्मशालाओं एवं मंदिर नं. 5 का प्रबन्ध एक ही कमेटी के अंतर्गत है।
स्मरण रहे तीर्थराज सम्मेदशिखर जी की वन्दना का जो फल होता है वही फल श्री सोनागिर सिद्ध क्षेत्र की तीन वन्दना करने से होता है।
चर्चा आ गई तीर्थराज सम्मेद शिखर जी की। तो आइये आपको ले चलते हैं तीर्थराज शिखरजी की ओर।
श्री सम्मेदशिखरजी सम्मेदशिखर संसार के संपूर्ण तीर्थक्षेत्रों में सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ है। इसलिए इसे तीर्थराज कहा जाता है। सम्मेदशिखर की वंदना का वास्तविक फल यह है कि उसकी एक बार वन्दना और यात्रा करने से परम्परा से संसार के जन्म मरण से छुटकारा मिल जाता है। यहां अभव्य और दूरान्दूर भव्य के भाव वन्दना करने के हो ही नहीं सकते। इसे तीर्थराज कहने का विशेष कारण है। शास्त्रों में कथन है कि सम्मेदशिखर और अयोध्या अनादि निधन तीर्थ हैं। अयोध्या में सभी तीर्थंकरों का जन्म होता है और सम्मेदशिखर में सभी तीर्थंकरों का निर्वाण होता है। किन्तु इस हुन्डासर्पिणी काल में काल-दोष से इस शाश्वत नियम का व्यतिक्रम हो गया। अयोध्या में केवल पांच तीर्थंकरों का ही जन्म हुआ और सम्मेदशिखर से बीस तीर्थंकरों का निर्वाण हुआ। इसके अतिरिक्त असंख्य मुनियों ने भी यहां से मुक्ति प्राप्त की। पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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