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जैन हरिवंशपुराण तथा महापुराण के अनुसार कर्मभूमि के प्रारम्भ काल में तीर्थंकर ऋषभदेव ने अपने राज्यकाल में सुव्यवस्था की दृष्टि से 52 जनपदों की स्थापना की थी। उनमें एक शूरसेन जनपद था। राम के छोटे भाई शत्रुघ्न मथुरा के राजा थे। उनके प्रतापी पुत्र शूरसेन के कारण यह नाम और भी प्रसिद्ध हो गया। कृष्णा साहित्य में भी 84 वनों का उल्लेख आया है। उनमें एक अग्रवन था जो यमुना तट पर दूर तक फैला हुआ था। इसमें एक ओर मथुरा नगरी थी और दूसरी ओर शौरीपुर। महाभारत काल में इन दोनों पर यदुवंशियों का आधिपत्य था। मथुरा श्रीकृष्ण की लीलाभूमि तथा शौरीपुर उनके चचेरे भाई जैन तीर्थंकर नेमिनाथ की जन्मभूमि थी। मथुरा और शौरीपुर दोनों ही उत्तर भारत के पावन सिद्धक्षेत्र हैं।
महाकवि जिनसेन के हरिवंश पुराण के अनुसार तीर्थंकर नेमनाथ के पूर्वजों में राजा यदु थे। उनके शूरसेन नामक पुत्र ने शौर्यपुर अथवा शूरसेन देश की स्थापना की थी। जिनसेन द्वारा वर्णित ही शौर्यपुर आजकल शौरीपुर-बटेश्वर नाम से जाना जाता है।
शौरीपुर में तीर्थंकर नेमिनाथ के गर्भ और जन्म कल्याणक हुए। इसके साथ ही यह निर्वाण भूमि है, सिद्धक्षेत्र है। यहां से मुनि धन्यकुमार और अनसकुमार मुक्ति पद को प्राप्त हुए। यहां पर भगवान ऋषभदेव, पार्श्वनाथ व महावीर स्वामी का समवशरण आया था। सुप्रतिष्ठित मुनिराज को यहां केवलज्ञान प्राप्त हुआ था। यम नामक अन्तकुल केवली और विमलसुत यहीं से मुक्त हुए। यह स्थान दानी कर्ण की जन्मभूमि हैं
प्राचीनता के स्मारक के रूप में दिगम्बर जैन मंदिर शेष हैं। इसके 3 कि.मी. दूर पर अतिशय क्षेत्र बटेश्वर है।
श्री सुनहरीलाल जैन ने यहां प्रवेश द्वार बनवाया।
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पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास