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आचार्य श्री विमलसागर जी दीक्षा गुरु आचार्य श्री महावीर कीर्ति जी आचार्य श्री सन्मतिसागर जी दीक्षा गुरु-आचार्य श्री विमलसागर जी आचार्य श्री पार्श्वसागर जी दीक्षा गुरु-आचार्य श्री विमलसागर जी आचार्य श्री निर्मलसागर जी दीक्षा गुरु-आचार्य श्री विमलसागर जी उपाध्याय श्री अजितसागर जी आचार्य श्री शांतिसागर जी की परम्परा
में
मुनिश्री अजितसागर जी
दीक्षा गुरु आचार्य श्री शिवसागर जी
मुनिश्री अनन्तसागर जी
दीक्षा गुरु - आचार्य श्री विमलसागर जी
भट्टारकों को अपना गुरु मानते थे ।
कविवर रइधू अनेकान्त जून 1969 पृ. 28 में पं. परमानन्द शास्त्री लिखते हैं“पद्मावती पुरवाल सभी दिगम्बर जैन आम्नाय के पोषक हैं और आगम पंथ के प्रबल समर्थक हैं ।
परवार जैन समाज का इतिहास पृ. 548 पर सिद्धान्ताचार्य पं. फूलचन्द जी सिद्धान्त शास्त्री लिखते हैं
“पद्मावती पोरवाल : यह जाति प्रत्येक प्रान्त में तेरह पंथी दिगम्बर जैन धर्मावलम्बी है । तथा उ.प्र. म.प्र. और महाराष्ट्र में अधिकतर पाई जाती है ।"
डा. रामेश्वरदयाल गुप्त - वैश्य समाज का इतिहास में पृ. अध्याय 28/7 पर लिखते हैं
'ब - दिगम्बर जैन पद्मावती पोरवाल ( पुरवाल ) - यह शाखा पूरी तरह तेरहपंथी धर्मावलम्बी है । इसके प्रमुख गोत्रों में पांडे, केडिया, पादमी, अजमेरा या सिरमोर आदि हैं।"
इस जाति में अन्य जातियों की तरह दस्सा बीसा का भेद था । आपस में रोटी-बेटी का व्यवहार नहीं था। वर्तमान में कुछ लोग इस बंधन को पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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