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सामाजिक स्थिति-समाज की सदस्यता का आधार जन्म होता है। पितृ प्रधान परिवार पाए जाते हैं। संयुक्त परिवार में विश्वास है । दाया भाग में पुत्री को सम्मिलित नहीं करते। स्त्रियों की दशा सामान्य है तथा स्वयं को पराश्रिता मानती है । दैनिक पूजा पाठ, चौके की शुद्धता एवं खानपान में त्याग की भावना विशेष रहती है। लोग अधिकांश में देवदर्शन के बाद ही दिन में भोजन का कार्य सम्पन्न करते हैं । यह जाति पूर्ण शाकाहारी है। विवाह रीति रिवाज
यह लोग अन्तः समूह विवाह पद्धति में विश्वास करते हैं। एक बार किए हुए अन्तर्जातीय विवाह से उत्पन्न संतान को पद्मावतीपुरवाल जाति में सम्मिलित नहीं हो सकती। जाति मां से चलती है। विवाह निम्नलिखित सोपान में सम्पन्न होता है
वर की खोज- यह विवाह की प्रस्तुति है । वर कन्या से 4 वर्ष बड़ा होना अच्छा समझा जाता है । कन्या और वर में बारह वर्ष से अधिक अंतर निम्न स्तर का माना जाता है ।
वाग्दान - वर के पिता द्वारा दिया गया शादी का वचन वाग्दान कहा जाता है। वंश, गोत्र, परिवार में पाया जाने वाला दोष अथवा वर का कोढ़ी, पागल, अपराधी अथवा कन्या के दुराचारिणी पाए जाने पर यह वचन भंग किया जा सकता है।
गोद भरना - गोद एक स्नेह युक्त आत्मीयता प्रकट करने की रस्म थी जो मध्ययुगीन देन है। इसमें अधिकतम भेंट इक्कीस रुपये की निर्धारित थी। आज यह सुरसा का मुंह बनी हुई है। इस जाति का विकृत रूप जिन कारणों से हुआ, उनमें गोद की रस्म सर्वोपरि है। इसी गोद ने दहेज को जन्म देकर आज इस जाति के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है।
इसके पश्चात अनेक छोटे-छोटे सोपान पूर्ण किये जाते हैं। इन सबके लिए नाई, नौकर, पाण्डे, मंदिर, माली की भेंटें एवं वर पक्ष के घरवालों पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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