________________
आपकी भी प्रमुख भूमिका रही। मंदिर जी का निर्माण पूर्णता की ओर था, साथ ही वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव की योजना बन रही थी इसी बीच 1941 में श्री जमनादासजी का स्वर्गवास हो गया।
श्री जमनादासजी के दो पुत्र श्री राजकिशोर एवं श्री जगतकिशोर हुए। श्री जगतकिशोर जी की पत्नी अपने पिताजी के यहां अवागढ़ गईं थीं वहीं उनका स्वर्गवास हो गया। उनके बच्चे अपनी मां के स्वर्गवास के बाद नानी के पास ही रहे। श्री जगतकिशोर जी का दिल्ली में 1976 में स्वर्गवास हो गया।
पारिवारिक विवाद के कारण श्री राजकिशोर जी 1950 में अपना घर छोड़कर अज्ञातवास के लिये चले गये। घर छोड़कर जाने के 9 वर्ष बाद उनकी दूसरी पुत्री कु. मित्रा की जब शादी हो रही थी, उस समय श्री राजकिशोर जी घर वापस आ गये। परिवार और समाज में खुशी छा गई। पर इस खुशी के आने से लगभग 15 दिन पूर्व उनकी चाची का स्वर्गवास हो गया। श्री राजकिशोर जी की अनुपस्थिति में उनकी मां और चाची ने कुशलतापूर्वक घर संभाला था। __ श्री राजकिशोर जी के सर्वश्री मित्रसेन, देवसेन, नरेन्द्रकुमार और श्री सुरेन्द्रकुमार चार पुत्र हुए। श्री राजकिशोर जी का 1982 में स्वर्गवास हो गया। श्री मित्रसेन का भी 1999 में स्वर्गवास हो गया। उनके दो पुत्र हैं। श्री देवसैन के तीन और श्री नरेन्द्रकुमार के एक पुत्र है। श्री सुरेन्द्रकुमार निःसंतान हैं। श्री देवसेन जी वर्तमान में टेंट का व्यवसाय करते हैं। पिछले लगभग 5 वर्ष से वे पद्मावती पुरवाल पंचायत के उपाध्यक्ष हैं। राजनीति में कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता और मंडल में पदाधिकारी हैं। श्री नरेन्द्रकुमार जैन दवाइयों का थोक व्यापार करते हैं। धार्मिक और सामाजिक कार्यों में उनकी रुचि है। सभी धर्मिक और सामाजिक कार्यों में अपना योगदान देते हैं।
219
पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास