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स्व. श्री बनारसीदासजी बर्तन वाले एटा जिले के रामगढ़ ग्राम के श्री ठाकुरदास जी के दो पुत्र श्री गुलजारीलालजी और श्री बनारसीदासजी व्यवसाय की तलाश में दिल्ली आये। यहां आकर उन्होंने अनाज और हलवाई की दुकान की। गांव में मां के स्वर्गवास के बाद उनके छोटे भाई श्री बाबूलालजी भी दिल्ली आ गये। तीनों भाइयों की शादियां यहीं पर हुई। दिल्ली आने पर बाबूलाल जी ने सी.पी.डब्ल्यू.डी. में ठेकेदारी और सेना में माल सप्लाई करने का काम शुरू किया। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान अनेक युवाओं को उन्होंने सेना में भर्ती कराया। युद्ध समाप्ति पर वायसराय हिन्द ने इनकी सेवाओं से प्रसन्न होकर एक प्रशस्ति पत्र उन्हें प्रदान किया। 'इंडिया गेट' पर लिखित नामों में इनका भी नाम लिखा हुआ है ऐसा बताया जाता है। श्री बाबूलाल जी की पत्नी एम.ए. पास थीं। वह एक कन्या विद्यालय की प्रधान अध्यापिका थीं.। इनके कोई पुत्र नहीं था, केवल पुत्रियां ही थीं। उन्होंने उन पुत्रियों को भी उच्च शिक्षा दिलाई। 1937 में बाबूलाल जी की . पत्नी का स्वर्गवास हो गया। श्री बाबूलाल जी 1942 के स्वाधीनता आंदोलन से जुड़ गये। 1955 में श्री बाबूलाल जी का स्वर्गवास हो गया।
श्री बनारसीदास जी के बड़े भाई श्री गुलजारीलालजी धार्मिक प्रवृत्ति के समाज सेवी थे। इनके कोई संतान नहीं थी। श्री गुलजारीलालजी ने श्री बनारसीदास जी के बच्चों को ही अपना बच्चा माना। पत्नी के स्वर्गवास के बाद उन्होंने पुनर्विवाह न करके पहले ब्रह्मचर्य व्रत और बाद में 7 प्रतिमाएं धारण कर लीं। 1950 में उनका स्वर्गवास हो गया। ___ श्री बनारसीदास जी ने चांदनी चौक में सुनहरी मस्जिद के पास बर्तनों की दुकान की। व्यवसाय में उन्होंने अच्छी प्रगति की और कई मकान खरीदे। सन् 1923 में धर्मपुरा मस्जिद खजूर में एक बहुत बड़ा मकान खरीदा। उनके उत्तराधिकारी उसी मकान में उसी समय से रहते चले आ रहे हैं। पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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