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से प्रसिद्ध थे। स्व. नरसिंहदास जी 'नरसिंहदास कौन्देय' नाम से जाने जाते थे।
इस प्रकार अप्रचलित होने पर भ्ज्ञी निम्न गोत्रों की जानकारी मिली
1. सिंह, 2. उत्तम, 3. सरावगी, 4. सेठ, 5. नारे, 6. तिलक, 7. धार, 8. सिरमौर (श्रीमोर या अजमेरा), 9. पांडे, 10. कौन्देय, 11. चौधरी, 12. केड़िया, 13. पाढ़मी, 14. कड़ेसरिया, 15 सिंघ, 16. सिंघई
क्योंकि समाज के लोग गोत्रों के बारे में अनभिज्ञ हैं इसलिए अभी गोत्र निर्माण के बारे में कुछ नहीं लिखा जा सका। परन्तु गोत्र 'सिरमौर, पाण्डे, सिंघई' के बारे में कुछ संकेत मिला है इसी इतिहास में 'पुरवाल समाज उत्पत्ति की किंवदन्तियों में उसे उद्धृत कर रहे हैं।
“इन्हीं निष्कासित लोगों ने कन्या के नाम पर पद्मावती नगरी बसाई और स्वयं पद्मावती पुरवाल कहने लगे। उन्होंने अपनी सामाजिक व्यवस्था का नवीनीकरण किया। अपने प्रधान को 'सिरमौर' पंडित जो पुरोहित का कार्य करता था वह ‘पांडे' और प्रबंधक को 'सिंघई' शब्दों से संबोधित किया।"
पद्मावतीपुरवाल समाज की मान्यताएं एवं वैवाहिक रीतिरिवाज पद्मावती पुरवाल अपने को सोमवंशीय क्षत्री मानते हैं।
भेद-पद्मावती पुरवाल समाज दो भागों में बंटी हुई है-दस्सा और बीसा । धार्मिक मंच पर ये दोनों एक, किन्तु सामाजिक मंच पर अलग-अलग। आपस में रोटी-बेटी व्यवहार संबंध नहीं। वर्तमान में इस बंधन में शिथिलता आ गई है।
धर्म-सम्पूर्ण जाति अविच्छिन्न रूप से शुद्ध दिगम्बर जैन आम्नाय को मानती है। लेकिन बीस पंथ एवं तेरह पंथ भेद से इसमें दोनों मान्यताएं वाले हैं। पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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