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को भेटों के लिए दक्षिणा निर्धारित है। 17, 31, 51 रुपयों की सीमाएं थीं। अब एकमुश्त राशि का प्रचलन है।
नाम उतरवाना-वर के वंश के पूरे नाम कन्या पक्ष द्वारा मंगाने का रिवाज है। संभवतया इसका यह कारण प्रतीत होता है कि वर पक्ष की पारिवारिक दशा के संबंध में ज्ञान कन्या पक्ष को हो जाता है।
पीत पत्रिका-लग्न से पहले पीली चिट्ठी विवाह की प्रथम सूचना के रूप में भेजी जाती है।
लग्न भेजना-लग्न में जातीय पंचों के समक्ष चार आने, आठ आने या फिर एक रुपया विवाह का स्तर निर्धारित करने के उद्देश्य से कन्या पक्ष के यहां भेजा जाता है। यहीं से समस्त कार्य प्रारम्भ हो जाते हैं।
बारात का जाना-दूल्हा गाजे बाजे के साथ मंदिर में दर्शन करने के बाद पाणिग्रहण तिथि से एक दिन पूर्व कन्या पक्ष के यहां जाता है। प्राचीन काल में वर पक्ष स्वयं बारातियों को कच्चा खाना खिलाता था। इसे 'रूख रोटी' कहते थे। लेकिन आजकल यह प्रथा बन्द है। दूल्हा का कन्या पक्ष के दरवाजे पर पहुंचना बारात का चढ़ना कहा जाता है। यहां कन्या पक्ष से बर्तन, दूल्हे के कपड़े एवं 51/- रुपये से अधिक रुपया न देने का रिवाज है। आज भौतिक चकाचौंध एवं प्रदर्शन की भावना ने इसका रूप विकृत कर दिया है।
दूल्हे का पहनावा 'जामा' (क्षत्रिय पोशाक), फैंटाकटारी का बांधना, बारात का कन्या पक्ष के घर पहुंचने की विधि 'चढ़ाई करना', तीर चलाना आदि क्रियाएं होती हैं।
देवदर्शन-वर पक्ष सर्वप्रथम देवदर्शन के लिए जाता है और मंदिर में यथाशक्ति (विवाह के सार देखकर) दान की घोषणा करता है। पहले बिना देवदर्शन किए कन्या पक्ष का समस्त खानपान वर्जित था। पद्यावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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