________________
इसके स्तनों से स्वतः दूध झर रहा है। दूसरे दिन गाय को उसने उस टीले पर जाने से रोकना चाहा पर गाय रूकी नहीं। दूध का झरना वह कैसे रोक सकता। उसके लिए यह अनबूझ पहेली बन गई।
अनेक ताने-बाने बुनते हुए उसे उस स्थान को खोदने का विचार आया और फावड़ा लेकर खोदने लगा। उसे आवाज सुनाई. दी-'जरा सावधानी से खोद' । आवाज सुनकर वह सावधान हो गया और फावड़ा धीरे-धीरे चलाने लगा। तभी फावड़ा किसी कठोर वस्तु से टकराया। वह धीरे-धीरे मिट्टी हटाने लगा। मिट्टी हटाते-हटाते उसे मूर्ति का सिर दिखाई दिया। सिर देखते ही उसका उत्साह दुगुना हो गया। वह मूर्ति के चारों ओर की मिट्टी हटाने में जुट गया। अब उसे मूर्ति दिखाई देने लगी। उसने सावधानी से मूर्ति बाहर निकालकर रखी और खड़ा होकर एकटक निहारने लगा। आनन्दविभोर हो गया, नेत्र भर गये। सहज सरलता से प्लवित अश्रुधारा से सभी कल्मष विरोहित हो गए।
भूगर्भ से भगवान प्रकट हुए हैं यह बात चारों ओर फैल गई। दूर-दूर से दर्शनार्थी खिचकर आने लगे। मेला जुटने लगा। इस मनोहारी प्रतिमा के अतिशयों की चर्चा सर्वत्र फैलने लगी।
बसवा गांव (जयपुर) निवासी दिगम्बर जैन खण्डेलवाल श्री अमरचन्द बिलाला भी दर्शनार्थ आये। भगवान के दर्शनों से बड़ी शान्ति अनुभव हुई। उनकी भावना हुई कि जिनालय बनाकर भगवान को विराजमान किया जाये। मंदिर का निर्माण हुआ। भगवान की इस मनोहारी प्रतिमा को उसमें विराजमान करने का अवसर आया, पर मूर्ति अचल हो गई। अपने स्थान से न हट सकी। तभी उस गवाले का सहयोग चाहा गया और प्रतिमा समारोह पूर्वक श्री मंदिरजी में विराजमान कर दी गई।
अतिशयों से आकर्षित होकर अनेक लोग मनोकामनाएं लेकर आने लगी। उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होने के समाचार परिचित जनों तक पद्यावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
186