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प्राचीन काल में राजकुमारों को किन-किन विषयों की शिक्षा दी जाती थी, इसका वर्णन इसमें है।
खारवेल ने कुमारी पर्वत पर निर्वाण प्राप्त अरहंतों की पूजा के लिए काय-निषिधा बनवाई थी। उसी के समीप उसकी रानी सिधुला ने भ्रमणशील श्रमणों (तपस्वियों) के निवास के लिए एक निसियां का निर्माण कराया था। शायद इसे ही अभिलेख में 'अरहन्त प्रासाद' भी कहा गया है। खारवेल की बनवायी काय-निषिद्या तथा सिधुला की बनवाई निसियां दोनों अब सुरक्षित नहीं है। किन्तु दोनों की संरचना स्तूपाकार होती थी। स्तूप पूज्य व्यक्तियों के स्मारक के रूप में बनाये जाते थे और उनकी पूजा की जाती थी। मूर्ति पूजा प्रचलन होने से पहले स्तूप पूजा प्रचलित थी।" इस तीर्थ क्षेत्र पर खण्डगिर पर्वत पर पार्श्वनाथ मंदिर में श्री पार्श्वनाथ की वेदी प्रतिष्ठा
में
'श्री पार्श्वनाथ प्रतिमा दिगम्बर जैन मूल संघाम्नायानुसारेण प्रतिष्ठापित, प्रतिष्ठाचार्य लम्बुकांचक श्रीमान पण्डित तर्कतीर्थ झम्मनलाल, पद्मावती पुरवाल जातीय श्री निवास शास्त्री तथा परवार नन्हेलाल। शुभ मिती बैशाख सुदि 3 गुरुवार वि.सं. 2007 श्री वीर निर्वाण 2476 दि. 20/4/50
जिसका प्रबन्ध पद्मावती पुरवाल समाज करती है
श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र मरसलगंज श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र ऋषभनगर मरसलगंज उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद नगर से 22 किलोमीटर दूर है। यहां अब जैनों का कोई घर नहीं है। पहले मरसलगंज में जैनों की अच्छी आबादी थी। उस समय नगर धन-धान्य से पूर्ण था और यहां एक छोटा जैन मंदिर बना हुआ था। पद्यावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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