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: "सं. 1639 बैसाख वदि चन्द्रवासरे श्री काष्ठासंघ ......
माथुर गच्छे पुष्कर मणे भ. श्री कमलकीर्ति देवाः तत्पड़े .... श्री शुभचन्द्र देवाः तत्पट्टे भ. यासेन देवाः तदाम्नाये . ... . पद्मावती पुरवालान्वये साव होरम्...॥" . . . . . . .
(कमलकीर्ति के शुभचन्द्र और कुमारसेन दो पट्ट शिष्य हुए। हरिवंश पुराण से पता चलता है कि भ. शुभन्द्र का मठ सोनागिर में था। उनके शिष्य यशःसेन ने सं. 1639 में उपरोक्त यंत्र स्थापित किया।)
चर्चा सोनागिर की आ गई तो प्रथमतः ही सोनागिर सिद्धक्षेत्र पर पद्मावती पुरवाल समाज के योगदान की चर्चा करेंगे।
सोनागिर मान्यता है कि पद्मावती नगर में आजीविका के साधन कम होने के कारण समाज ने सर्वप्रथम आगरा की ओर प्रस्थान किया। आगरा से ही उत्तर प्रदेश के अनेक नगरों तथा ग्रामों मे व्यापार, व्यवसाय हेतु फैल गई। इस पद्मावती पुरवाल समाज की अधिकतर संख्या उत्तर प्रदेश में विद्यमान है। सोनागिर सिद्धक्षेत्र उत्तर प्रदेश की सीमा से लगा बुन्देलखण्ड क्षेत्र में स्थित है। वर्तमान में मध्यप्रदेश के दतिया जिले में अवस्थित है। .
स्थिति-आगरा-बम्बई मार्ग पर सैन्ट्रल रेलवे का दतिया स्टेशन है। दतिया के उत्तर-पश्चिम में 9 कि.मी की दूरी पर सोनागिर पर्वत है। झांसी-देहली सैक्सन पर सोनागिर रेलवे स्टेशन है जहां से सड़क मार्ग से पर्वत 5 किलोमीटर है।
महात्म्य-वैसे तो यह क्षेत्र भगवान आदिनाथ के समय से ही श्रमणांचल के रूप में प्रसिद्ध रहा है. परन्तु इसका महत्व व वैभव उस समय अधिक बढ़ गया जब आठवें तीर्थंकर भगवान चन्द्रप्रभु का समवशरण कई बार
पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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