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भक्तों को सबसे प्यारा है। "भगवन' यह नाम सहारा है।
जयवीर कहो, जयवीर कहो॥4॥ श्रीमती सौ. प्रेमवती धर्मपत्नी श्री नेमीचन्द जी 'सिरमौर' बांसरिसाल (आगरा) ने बनवाई वी.नि.सं. 2499 उपरोक्त कविता के बायीं ओर ऋषभ स्तुति है श्री भगवत जी की है तथा इसके नीचे स्व. पं. जिनेश्वरदास जी सरैना (एटा) का नेमिनाथ अर्घ लिखा हुआ है।
यहीं पर भगवान नेमिनाथ की वेदी के सामने दीवार पर एवं दायी बायीं ओर पं. लालबहादुर शास्त्री की रचना दशधर्म पर लिखी हुई हैसामनेमुक्ति पथ शिवसोपान
मुक्तिपथ आकिंचन
क्षमादि दश धर्मों के ब्रह्मचर्य
प्रत्येक धर्म पर छन्द दायीं ओरमुक्ति पथ मुक्ति पथ मुक्ति पथ मुक्ति पथ निर्लोभता इन्द्रिय निग्रह आत्म प्रखरता निर्मलता
(आत्म संयम) बायीं ओरमुक्ति पथ मुक्ति पथ मुक्ति पथ मुक्ति पथ क्षमा धर्म निरभिमानिता
सत्यता इन पर छन्द लिखे हुए हैं। पर्वतराज के मंदिर नं. 19 नेमिनाथ की वेदी के नीचे गर्भगृह का फर्श-- 'स्वर्गवासी पूज्यमाता बतासो बाई जी के स्मरणार्थ सेठ मगनलालजी पद्यावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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