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गाथा पद्मावतीपुरवाल जाति के उद्भव की
जैसा कि लिखा जा चुका है कि पद्मावती पुरवाल जाति का निकास पद्मावती नगरी से है परन्तु इसके उद्भव संबंधी अनेक किंवदन्तियां और भी हैं एवं विद्वानों के विचार हैं, उनको यहां दिया जा रहा है
1. ऋषभ देव के दो पुत्र भरत और बाहुबली के द्वारा इक्ष्वाकु के दो वंश कालान्तर में और किये गये, जिन्हें क्रमशः सूर्य और चन्द्रवंश के नाम से पुकारा जाता है। सोमवंश में सोम-श्रेयांस बन्धु बड़े प्रतापी राजा हुए। इन्हीं के पुत्र जयकुमार भरत की सेना में सेनापति और बाद में ऋषभ देव के 72वें गणधर हुए। सेनापति जयकुमार ने ही स्वयंवर प्रथा चलाई जो मध्य युग तक क्षत्रियों में बहु प्रशंसित प्रथा रही। इस स्वयंवर प्रथा के अनुसार जयकुमार ने सुलोचना से विवाह किया। कहा जाता है कि पद्मावती पुरवाल इन्हीं जयकुमार के वंशज हैं, जिनका मूल निवास हस्तिनापुर था। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि पद्मावती पुरवाल जाति मूलतः क्षत्रिय सोमवंशीय जाति है और ऋषभकाल से ही जैन धर्मावलम्बी
है।
चूंकि सोमवंशीय जयकुमार का निवास हस्तिनापुर था, उसके वंशज धीरे-धीरे संख्या की दृष्टि से तथा कुछ अज्ञात कारण भी रहे हों, से वे पदमनगर में आकर बस गये। यह भी अनुमान लगाया जाता है कि
पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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