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दूसरी 'सत्य धर्म नाट्य समिति के संस्थापक सेठ कन्हैयालाल थे। यह धार्मिक नाटकों का मंचन करती थी। ला. भागचन्द दोनों ही मण्डलियों में समानरूप से समादृत थे तथा दोनों समितियों के नाटकों में भाग लेते थे। सेठजी लिखित 'श्रीकृष्ण जन्म' और पं. श्यामलाल रचित 'रंग में भंग' नाटक बड़े ही लोकप्रिय हुए। भागचंद जी ने दोनों में ही प्रमुख भूमिकाएं निबाही थीं।
जैन धर्म में आपकी दृढ़ आस्था थी। शायद ही कोई धार्मिक आयोजन होगा जिसमें वे सम्मिलित न होते हों। नगर ही नहीं अपने सुमधुर भजन संगीत से उन्होंने कलकत्ता, मुम्बई, जयपुर, हटिया, श्रीमहावीरजी, सोनागिरि जी मैनपुरी आदि की संगीत सभाओं में अपनी कला की धाक जमा दी थी। ला. भागचन्द जी ने 18 जुलाई 1987 को 94 वर्ष की दीर्घायु में अंतिम श्वास छोड़ा।
विद्यावारिधि न्यायालंकार
पं. मक्खनलालजी शास्त्री पंडित प्रवर मक्खनलाल जी का जन्म चावली ग्राम में हुआ। आपके पिता श्री वैद्य तोताराम जी थे और माता मेवारानी थीं। आप पद्मावती पुरवाल जाति के भूषण थे व तिलक गोत्रज थे। परिवार में आपके छह भाई हुए। श्री रामलालजी ने विवाह नहीं किया, व्यापार और धर्म साधन किया। श्री मिट्ठनलालजी रुई के व्यापारी बने। पं. लालाराम जी ने लगभग 100 ग्रन्थों की टीकायें लिखीं। पंडित नंदलाल जी शास्त्री तो कालान्तर में मुनि सुधर्मसागर बन गये थे। पंडित जी के छोटे भाई श्री लालजी जौहरी धर्मात्मा एवं पंडित जी स्वयं अतीव धार्मिक सुप्रतिष्ठित व्यक्ति थे।
शिक्षा-अपने गांव में छठी कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद पंडित जी ने दिगम्बर जैन विद्यालय, मथुरा और सहारनपुर में संस्कृत का अध्ययन
फ्याक्तीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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