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श्री सुनहरीलाल इस हत्या केन्द्र की बात सुनकर चौंके। पशुओं की रक्षा के लिए उनके धवल नेतृत्व में नर-नारियों की टोलियां निकल पड़ी। जेलें सत्याग्रहियों से भरने लगीं। लाला सुनहरीलाल कभी तो दिल्ली में मंत्रियों से अपनी मांग के मनवाने के लिए मेमोरेन्डम देते फिरते थे, कभी सत्याग्रहियों को भोजन पहुंचाते थे, कभी कारागृह पर कैदियों से भेंट करते फिर रहे थे। कभी जुलूस के आगे झंडा उठाये चल रहे होते। आखिरकार जनता का बलिदान और संगठन रंग लाया। भारत सरकार झुकी, हजरतपुर की मशीनें उखड़ी और कट्टी खाने का विशाल भू-भाग पशुओं का चारागाह बन गया। जनता ने लालाजी को बधाइयां दीं, गले में हार डाले, जय-जयकार किये।
आपकी समर्पित सेवाओं के प्रति कृतज्ञता स्वरूप 30 मार्च 1983 को सिद्धक्षेत्र सोनागिर में भट्टारक चारुकीर्ति जी मूबिद्री के द्वारा अभिनन्दन-पत्र आपको भेंट किया गया था।
लालाजी ने अपने पूज्य पिता का वैभव देखा था तो उनकी मुसीबतें भी झेली थीं। पिता के उत्तरदायित्वों को निभाते हुए उन्होंने वे सभी श्रमशील कार्य किये जो पेट भरने और परिवार पालने हेतु अनिवार्य थे। आपने परिवार का मात्र भरण-पोषण ही नहीं किया, बल्कि प्रत्येक सदस्य को उसको अपने पैरों पर खड़ा भी किया।
स्व. पं. शिवजीरामजी पाठक आपका जन्म रारपट्टी (एटा) में हुआ, परन्तु कार्यक्षेत्र रांची रहा। बड़े स्पष्ट वक्ता एवं विधि विशेषज्ञ थे।आपकी बनाई हुई 'षोडश संस्कार विधि' एवं प्रतिष्ठा-विधि आदि कई पुस्तकें हैं।
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पद्मावतीपुरबाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास