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पालन पोषण मामाजी आलमचंद हरकचंद्र दि. जैन के घर पर शुजालपुर नगर में हुआ। आप बचपन से ही विलक्षण बुद्धि के धनी थे। बचपन से ही आपकी रुचि धार्मिक ग्रंथों में रही। आपने जैन धर्म के चारों अनुयोगों का अध्ययन बचपन से ही कर लिया था।
आप प्रातः पूजन-प्रक्षाल नियमित रूप से करने के साथ रात्रि में शास्त्र प्रवचन करते रहे। तत्वार्थ सूत्र, रत्न काण्ड श्रावकाचार पुरुषार्थ, सिच्छुपाय, तथा प्रथमानुयोग के अनेक ग्रंथों का आपको अच्छा ज्ञान था। जब आप जीव के भेद विज्ञान की दृष्टि से बहिरात्मा अंतर आत्मा व परमात्मा पर प्रवचन करते थे तो लोग मंत्र मुग्ध होकर सुनते थे। आपने कालापीपल, मैना, तिलावद व इन्दौर में तीन सिद्ध चक्र-विधान करवाये। किन्तु आपने इसके लिए कोई राशि स्वीकार नहीं की।
आपने स्व. श्री मगनलालजी सिरमौर के साथ कई धार्मिक शिविरों में अध्ययन किया। श्री शिखरजी, गिरनार जी, श्रवणबेलगोला आदि सभी तीर्थों की कई बार यात्राएं वन्दनायें की। आपके जीवन की सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही है कि सांसारिक जीवन में सब प्रकार से समर्थ होते हुए भी आप जीवन पर्यन्त अल्प आरंभी अल्प परिग्रही रहे।
आप मध्य प्रदेशीय पद्मावती पोरवाल महासभा के जीवन पर्यन्त उपसंरक्षक व बाद में सन् 1986 से 1990 तक संरक्षक पद पर रहे। __ आदरणीय नन्नूमल जी एक श्रेष्ठ पंडित और वक्ता थे। सामाजिकता, धार्मिकता, वैदिकता व राजनैतिकता में पूर्णरूपेण निपुण थे। आप 1952 से 1957 तक कालापीपल मण्डी ग्राम पंचायत के सरपंच व मण्डी समिति के चेयरमेन रहे। आपका बाद का पचास वर्ष का जीवन अपने परिवार के साथ कालापीपल मण्डी में बीता।
आपका संपूर्ण जीवन आदर्श बनकर हमें व समाज को प्रेरणा देता रहेगा। अन्त समय में समस्त परिग्रहों का त्याग कर दिनांक 30 जनवरी 1990 को देवलोक सिधारे। पद्यावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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